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________________ Jain Education International लहुपरक्कमे पायत्ताणीयाहिवई, महावाऊ आसराया पीढाणीयाहिवई, पुप्फदंते हत्थिराया कुंजराणीयाहिवई, महादामड्डी उसभाणीयाहिवई, महामाढरे रहाणीयाहिवई । जहा सक्कस्स तहा सव्वेसिं दाहिणिल्लाणं जाव आरणस्स । जहा ईसाणस्स तहा सव्वेसिं उत्तरिल्लाणं जाव अच्चुयस्स । सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अब्धंतरपरिसाए देवाणं पंच पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता । ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अब्धंतरपरिसाए देवीणं पंच पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ १० ॥ 1 कठिन शब्दार्थ - जोइसिया - ज्योतिषी देव, भवियदव्वदेवा - भव्यद्रव्यदेव, णरदेवा नरदेव, धम्मदेवा - धर्मदेव, देवाहिदेवा - देवाधिदेव, (देवाइदेवा देवातिदेव), परियारणा परिचारणा, संगामिया - संग्रामिक, अणीया सेना, अणीयाहिवई - सेना के अधिपति, पायत्ताणीए - पदाति अनीक-पैदल सेना, पीढाणीए - पीढानीक- घुड़सवारों की सेना, कुंजराणीए - कुञ्जरानीक - हाथियों की .सेना, महिसाणीए - महिषानीक भैंसों की सेना, रहाणीए - स्थानीक - रथों की सेना, भावार्थ- पांच प्रकार के ज्योतिषी देव कहे गये हैं यथा - चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा । पांच प्रकार के देव कहे गये हैं यथा भव्य द्रव्य देव यानी दूसरे भव में होने वाले वैमानिक आदि देव । नरदेव - चक्रवर्ती, धर्मदेव चारित्र पालने वाले साधु महात्मा, देवाधिदेव (देवातिदेव ) - तीर्थङ्कर और भावदेव यानी देवायु को भोगने वाले वैमानिक आदि देव । पांच प्रकार की परिचारणा यानी वेद के उदय का प्रतीकार अर्थात् मैथुन कही गई है यथा कायपरिचारणा, स्पर्शपरिचारणा, रूपपरिचारणा, शब्दपरिचारणा और मनपरिचारणा । असुरों के इन्द्र असुरकुमारों के राजा चमरेन्द्र की पांच अग्रमहिषियाँ कही गई हैं यथा- काली, राजी, रजनी, विदयुत और मेघा । वैरोचनेन्द्र वैरोचन राजा बलीन्द्र की पांच अग्रमहिषियाँ कही गई है यथा- शुभा, निशुभा, रम्भा, निरम्भा, मदना । 1 असुरों के इन्द्र असुरकुमारों के राजा चमरेन्द्र के पांच संग्रामिक सेना और पांच संग्रामिक सेना के अधिपति कहे गये हैं यथा पदातिअनीक यानी पैदल सेना पीढानीक यानी घुड़सवारों की सेना, कुञ्जरानीक यानी हाथियों की सेना, महिषानीक-भैंसों की सेना, रथानीक यानी रथों की सेना । पांच अधिपति यथा – पदातिंसेना का अधिपति द्रुम, पीढानीक का अधिपति अश्वराज सोदामी, हस्ती सेना का अधिपति हस्तिराज कुन्थु, महिष सेना का अधिपति लोहिताक्ष, रथ सेना का अधिपति किन्नर है । वैरोचनेन्द्र वैरोचन राजा बलीन्द्र के पांच संग्रामिक सेना और पांच संग्रामिक सेना के अधिपति कहे गये हैं यथा - पदाति सेना यावत् रथों की सेना । पांच अधिपति-पदाति सेना का अधिपति महाद्रुम, - स्थान ५ उद्देशक १ - २७ For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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