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स्थान ५ उद्देशक १
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३. आचार्य, उपाध्याय जो सत्र एवं अर्थ जानते हैं उन्हें यथावसर सम्यग विधि पूर्वक गच्छ के साधुओं को न पढ़ावें। .
४. आचार्य, उपाध्याय गच्छ में जो ग्लान और नवदीक्षित साधु हैं उनके वैयावृत्य की व्यवस्था में सावधान न हों।
५. आचार्य, उपाध्याय गण को बिना पूछे ही दूसरे क्षेत्रों में विचरने लग जाय।
इन पांच स्थानों से गच्छ में अनुशासन नहीं रहता है। इससे गच्छ में साधुओं के बीच कलह उत्पन्न होता है अथवा साधु लोग आचार्य, उपाध्याय से कलह करते हैं। . इन बोलों से विपरीत पांच बोलों से गच्छ में सम्यक् व्यवस्था रहती है और कलह नहीं होता। इसलिये वे पांच बोल अकलह स्थान के हैं। .
निषद्या, आर्जव स्थान ... पंच णिसिजाओ पण्णत्ताओ तंजहा - उपकुडुया गोदोहिया, समपायपुया, पलियंका, अद्धपलियंका । पंच अज्जव ठाणा पण्णत्ता तंजहा - साहुअज्जवं, साहुमहवं, साहुलाघवं, साहुखंति, साहुमुत्ति॥९॥
कठिन शब्दार्थ - णिसिजाओ - निषदया, समपायपुया - समपादपुता, पलियंका - पर्यता, अण्णव - आर्जव, ठाणा - स्थान, साहुअज्जवं - उत्तम सरलता, साहुमहवं - उत्तम मृदुता, साहुलाघवंउत्तम लघुता, साहुखंति - उत्तम संपा, साहुमुत्ति - उत्तम त्याग।
भावार्थ - पांच प्रकार की निषदया कही गई है यथा - उत्कुटुका यानी आसन पर कूल्हा न लगाते हुए पैरों पर बैठना । गोदोहिका यानी गाय को दुहते समय जिस तरह बैठा जाता है उस तरह बैठना । समपादपुता यानी पैर और कूल्हों से पृथ्वी या आसन का स्पर्श करते हुए बैठना । पर्यङ्का यानी पद्मासन से बैठना, अर्द्ध पर्यङ्का यानी जंघा पर एक पैर रख कर बैठना। पांच आर्जवस्थान यानी संवरस्थान कहे गये हैं यथा - उत्तम सरलता, उत्तम मृदुता, उत्तम लघुता, उत्तम क्षमा, उत्तम त्याग ।
ज्योतिषी, देव, परिचारणा,अग्रमहिषियों,सेना और सेना के अधिपति पंचविहा जोइसिया पण्णत्ता तंजहा - चंदा, सूरा, गहा, णक्खत्ता, ताराओ । पंचविहा देवा पण्णत्ता तंजहा - भवियदव्वदेवा, णरदेवा, धम्मदेवा, देवाहिदेवा (देवाइदेवा), भावदेवा । पंचविहा परियारणा पण्णता तंजहा - कायपरियारणा, फासपरियारणा, स्वपरियारणा, सहपरियारणा, मणपरियारणा । ।
चमस्स्स णं असुरिदस्स असुरकुमाररण्णो पंच अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ तंजहाकाली, राई, रयणी, विजू, मेहा । बलिस्स णं वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो पंच
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