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________________ २४ श्री स्थानांग सूत्र गणंसि गिलाणसेहवेयावच्चं सम्मं अब्भुट्टित्ता भवइ, आयरियउवझाए णं गणंसि आपुच्छियचारी यावि भवइ णो अणापुच्छियचारी॥८॥ कठिन शब्दार्थ - गणंसि - गण में, बुग्गहट्ठाणा - विग्रह स्थान-कलह पैदा होने के कारण, अहाराइणिए - यथारालिक, सुयपज्जवजाए - श्रुतपर्यवजात-सूत्र और उनका अर्थ जानने वाले, सम्मसम्यक् रूप से, अणुप्पवाइत्ता - वाचना देने वाले, आपुच्छियचारी - पूछ कर कार्य करने वाला, अणापुच्छियचारी - बिना सम्मति के ही कार्य करने वाला, अवुग्गहट्ठाणा - अविग्रह स्थान । ____ भावार्थ - गच्छ में आचार्य उपाध्याय के पांच विग्रहस्थान यानी कलह पैदा होने के कारण कहे गये हैं यथा - आचार्य उपाध्याय अपने गच्छ में "इस कार्य में प्रवृत्ति करो, इस कार्य को न करो" इस प्रकार प्रवृत्ति निवृत्ति रूप आज्ञा और धारणा की सम्यक् प्रकार प्रवृत्ति न करा सके। आचार्य, उपाध्याय अपने गच्छ में यथारालिक (रत्नाधिक) यानी दीक्षा में बड़े साधुओं का यथायोग्य विनय वन्दना आदि न करा सके तथा स्वयं भी रत्नाधिक साधुओं का उचित सन्मान न करे । आचार्य उपाध्याय जो सूत्र और उनका अर्थ जानते हैं उसको यथावसर गच्छ के साधुओं को सम्यग् विधिपूर्वक न पढावें । आचार्य उपाध्याय अपने गच्छ के ग्लान और नवदीक्षित साधुओं की वेयावच्च की व्यवस्था में सावधान न हों । आचार्य उपाध्याय अपने गच्छ के साधुओं को पूछे नहीं अर्थात् किसी भी कार्य में उनकी सम्मति लेवे नहीं किन्तु उनकी सम्मति लिए बिना ही अपनी इच्छानुसार कार्य करें एवं अन्य क्षेत्र में विहार करें । इन पांच बातों से गच्छ में अनुशासन नहीं रहता है । इससे गच्छ में साधुओं के बीच कलह उत्पन्न होता है अथवा साधु लोग आचार्य उपाध्याय से कलह करते हैं। . ... आचार्य उपाध्याय के गच्छ में पांच अविग्रह स्थान कहे गये हैं यथा - आचार्य उपाध्याय अपने गच्छ में आज्ञा और धारणा की सम्यक् प्रकार से प्रवृत्ति करा सके । आचार्य उपाध्याय अपने गच्छ में रत्नाधिक साधुओं की यथायोग्य सम्यक् विनय करा सकें तथा स्वयं भी रत्नाधिक साधुओं का सम्यक् विनय करें । आचार्य उपाध्याय जो सूत्र और अर्थ जानते हैं उसको अपने गच्छ में समय समय पर साधुओं को सम्यक् विधिपूर्वक पढावें । आचार्य उपाध्याय अपने गच्छ में ग्लान और नवदीक्षित साधुओं की पैयावच्च की व्यवस्था में सावधान हों । आचार्य उपाध्याय अपने गच्छ के साधुओं को पूछ कर एवं उनकी सम्मति लेकर कार्य करते हों, किन्तु बिना सम्मति लिए कार्य न करते हों । इन पंच बातों से गच्छ में सम्यक् व्यवस्था रहती है और कलह नहीं होता है । विवेचन - गच्छ में आचार्य, उपाध्याय के पाँच कलह स्थान - १. आचार्य, उपाध्याय गच्छ में "इस कार्य में प्रवृत्ति करो, इस कार्य को न करो" इस प्रकार प्रवृत्ति निवृत्ति रूप आज्ञा और धारणा की सम्यक् प्रकार प्रवृत्ति न करा सकें। .. २. आचार्य, उपाध्याय गच्छ में साधुओं से रत्नाधिक (दीक्षा में बड़े) साधुओं की यथायोग्य विनय न करा सकें तथा स्वयं भी रत्नाधिक साधुओं की उचित विनय न करें। For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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