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स्थान १०
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यथा - आत्मज - अपनी स्त्री में उत्पन्न हुआ पुत्र आत्मज कहलाता है, जैसे भरत चक्रवर्ती का पुत्र आदित्य यश । क्षेत्रज - सन्तानोत्पत्ति के लिए स्त्री क्षेत्र रूप मानी गई है । अतः उसकी अपेक्षा से पुत्र को क्षेत्रज भी कहते हैं, जैसे पाण्डुराजा की पत्नी कुन्ती के पुत्र कौन्तेय कहलाते हैं । दत्तक - जो पुत्र दूसरे को गोद दे दिया जाता है वह दत्तक पुत्र कहलाता है, जैसे बाहुबली के अनिलवेग पुत्र दत्तक पुत्र कहा जाता है । विनयित - अपने पास रख कर जिसको अक्षर ज्ञान एवं धार्मिक शिक्षा दी जाय वह पुत्र विनयित कहलाता है । औरस - जिस बच्चे पर अपने पुत्र के समान स्नेह उत्पन्न हो गया है अथवा जिस बच्चे को किसी व्यक्ति पर अपने पिता के समान स्नेह पैदा हो गया है वह बच्चा औरस कहलाता है । मौखर - जो पुरुष किसी व्यक्ति की चापलूसी और खुशामद करके अपने आपको उसका पुत्र बतलाता है । शौंडीर - युद्ध के अन्दर कोई शूरवीर पुरुष दूसरे किसी वीरपुरुष को जीत कर अपने अधीन कर ले और फिर वह अधीन किया हुआ पुरुष अपने आपको उसका पुत्र मानने लग जाय । संवर्द्धित - भोजन आदि देकर जिसे पाला पोसा हो । उपयाचित - देवता आदि की आराधना करने से जो पुत्र उत्पन्न हुआ हो । धर्मान्तवासी - धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए जो धर्मगुरु के पास रहे उसे धर्मान्तेवासी कहते हैं । धर्म शिक्षा की अपेक्षा से शिष्य अन्तेवासी पुत्र कहलाता है।
विवेचन - वस्तु के स्वभाव, ग्राम नगर आदि के रीति रिवाज तथा साधु आदि के कर्त्तव्य को धर्म कहते हैं। धर्म दस प्रकार का कहा है जो भावार्थ से स्पष्ट है।
पुत्र के जो दस भेद बताये हैं। उसमें से प्रथम के सात भेद किसी अपेक्षा से अर्थात् उस उस प्रकार के गुणों की अपेक्षा से 'आत्मज' के ही बन जाते हैं। जैसे कि - माता की अपेक्षा से क्षेत्रज कहलाता है। वास्तव में तो वह आत्मज ही है। दत्तक पुत्र तो आत्मज ही है किन्तु वह अपने परिवार में दूसरे व्यक्ति के गोद दे दिया गया है इसलिये दत्तक कहलाता है। इसी तरह विनयित, औरस, मौखर और शौंडीर भी उस उस प्रकार के गुणों की अपेक्षा से आत्मज पुत्र के ही भेद हैं। यथा - विनयित अर्थात् पण्डित अभयकुमार के समान। औरस - उरस बल को कहते हैं। बलशाली पुन औरस कहलाता है, यथा - बाहुबली। मुखर अर्थात् वाचाल पुत्र को मौखर कहते हैं। शौंडीर अर्थात् शूरवीर या गर्वित (अभिमानी) जो हो उसे शौण्डीर पुत्र कहते हैं। यथा - वासुदेव। इस प्रकार भिन्न गुणों की अपेक्षा से आत्मज पुत्र के ही ये सात भेद हो जाते हैं।
- केवली के दस अनुत्तर, कुरुक्षेत्र,महद्धिक देव केवलिस्स णं दस अणुत्तरा पण्णत्ता तंजहा - अणुत्तरे णाणे, अणुत्तरे दंसणे, अणुत्तरे चरित्ते, अणुत्तरे तवे, अणुत्तरे वीरिए, अणुत्तरा खंती, अणुत्तरा मुत्ती, अणुत्तरे अज्जवे, अणुत्तरे महवे, अणुत्तरे लाघवे । समय खेत्ते णं दस कुराओ पण्णत्ताओ तंजहा - पंच देवकुराओ पंच उत्तरकुराओ, तत्थणं दस महतिमहालया
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