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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
दस थेरा पण्णत्ता तंजहा - गाम थेरा, णगर थेरा, रट्ट थेरा, पसत्थार थेरा, कुल थेरा, गण थेरा, संघ थेरा, जाइ थेरा, सुय थेरा, परियाय थेरा। . __ दस पुत्ता पण्णत्ता तंजहा - अत्तए, खेत्तए, दिण्णए, विण्णए, उरसे, मोहरे, सोंडीरे, संवुड़े, उवयाइए, धम्मंतेवासी॥१३५॥ .. कठिन शब्दार्थ - रटु धम्मे - राष्ट्रधर्म, पासंड धम्मे - पाषण्ड धर्म, पसंत्थार थेरा - प्रशास्तृ स्थविर, अत्तए - आत्मज, दिण्णए - दत्तक, विण्णए - विनयित, उरसे - औरस, मोहरे - मौखर, सोंडीरे - शौंडीर, संखुढे - संवर्द्धित, उवयाइए - उपयाचित, धम्मंतेवासी - धर्मान्तेवासी । ...
भावार्थ - दस प्रकार का धर्म कहा गया है यथा - ग्राम धर्म - हर एक गांव के रीति रिवाज और उनकी अलग अलग व्यवस्था । नगरधर्म - शहरों के रीति रिवाज तथा उनकी अलग अलग व्यवस्था । राष्ट्रधर्म - देश का रीति रिवाज । पाषण्डधर्म - पाषण्डी अर्थात् परिव्राजक आदि विविध सम्प्रदाय वालों का धर्म । कुल धर्म - उग्रकुल, भोगकुल आदि कुलों के रीति रिवाज अथवा भिन्न भिन्न गच्छों की समाचारी । गणधर्म - मल्ल आदि गणों की व्यवस्था अथवा जैनियों के गणों की समाचारी ।.. संघ धर्म - मेले आदि की व्यवस्था या बहुत से आदमियों के समूह द्वारा बांधी हुई व्यवस्था अथवा जैन सम्प्रदाय के साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका रूप चतुर्विध संघ की व्यवस्था । श्रुतधर्म - श्रुतं अर्थात् आचाराङ्ग आदि शास्त्र दुर्गति में पड़ते हुए प्राणी को ऊपर उठाने वाले होने से धर्म है । चारित्र धर्म - सञ्चित कर्मों को जिन उपायों से रिक्त अर्थात् खाली किया जाय उसे चारित्र धर्म कहते हैं । अस्तिकाय धर्म - धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय इन पांच अस्तिकायों के स्वभाव को अस्तिकायधर्म कहते हैं । ___ स्थविर - बुरे मार्ग में प्रवृत्त मनुष्य को जो सन्मार्ग में स्थिर करे उसे स्थविर कहते हैं। वे दस कहे गये हैं यथा - ग्राम स्थविर - गांव में व्यवस्था करने वाला बुद्धिमान् तथा प्रभावशाली व्यक्ति। नगरस्थविर - नगर में व्यवस्था करने वाला, वहाँ का माननीय व्यक्ति । राष्ट्र स्थविर - देश का माननीय तथा प्रभावशाली नेता। प्रशास्तृस्थविर - प्रशास्ता अर्थात् धर्मोपदेश देने वाला । कुलस्थविर - लौकिक तथा लोकोत्तर कुल की व्यवस्था करने वाला और व्यवस्था तोड़ने वाले को दण्ड देने वाला। गणस्थविर-गण की व्यवस्था करने वाला। संघस्थविर - साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका रूप चतुर्विध संघ की व्यवस्था करने वाला। जाति स्थविर - जिस व्यक्ति की आयु साठ वर्ष से अधिक हो वह जाति स्थविर कहलाता है। इसे वयस्थविर भी कहते हैं। श्रुतस्थविर - स्थानाङ्ग और समवायांग इन सूत्रों को जानने वाला । पर्यायस्थविर - बीस वर्ष से अधिक दीक्षा पर्याय वाले को पर्याय स्थविर कहते हैं।
पुत्र - जो अपने वंश की मर्यादा का पालन करे उसे पुत्र कहते हैं । पुत्र के दस भेद कहे गये हैं
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