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________________ स्थान १० ३५३ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 . आशंसा प्रयोग दस - आशंसा नाम है इच्छा। इस लोक या परलोकादि में सुख आदि की इच्छा करना या चक्रवर्ती आदि पदवी की इच्छा करना आसंशा प्रयोग है। इसके दस भेद हैं - . १. इहलोकाशंसा प्रयोग - मेरी तपस्या आदि के फल स्वरूप मैं इसलोक में चक्रवर्ती राजा बनें, इस प्रकार की इच्छा करना इहलोकाशंसा प्रयोग है। २. परलोकाशंसा प्रयोग - इस लोक में तपस्या आदि करने के फल स्वरूप मैं इन्द्र या इन्द्र सामानिक देव बनूँ, इस प्रकार परलोक में इन्द्रादि पद की इच्छा करना परलोकाशंसा प्रयोग है। ___३. द्विधा लोकाशंसा प्रयोग - इस लोक में किये गये तपश्चरणादि के फल स्वरूप परलोक में मैं देवेन्द्र बनूँ और वहाँ से चव कर फिर इस लोक में चक्रवर्ती आदि बनूँ, इस प्रकार इहलोक और परलोक दोनों में इन्द्रादि पद की इच्छा करना द्विधालोकाशंसा प्रयोग है। इसे उभयलोकाशंसा प्रयोग भी कहते हैं। . सामान्य रूप से ये तीन ही आशंसा प्रयोग हैं, किन्तु विशेष विवक्षा से सात भेद और होते हैं। वे इस प्रकार हैं - ४. जीविताशंसा प्रयोग - सुख के आने पर ऐसी इच्छा करना कि मैं बहुत काल तक जीवित रहूँ, यह जीविताशंसा प्रयोग है। . ५. मरणाशंसा प्रयोग - दुःख के आने पर ऐसी इच्छा करना कि मेरा शीघ्र ही मरण हो जाय और मैं इन दुःखों से छुटकारा पा जाऊँ, यह मरणाशंसा प्रयोग है। ६.कामाशंसा प्रयोग - मुझे मनोज्ञ शब्द और मनोज्ञ रूप प्राप्त हों ऐसा विचार करना कामाशंसा प्रयोग है। ७. भोगाशंसा प्रयोग - मनोज्ञ गन्ध, मनोज्ञ रस और मनोज्ञ स्पर्श की मुझे प्राप्ति हो ऐसी इच्छा करना भोगाशंसा प्रयोग है। शब्द और रूप काम कहलाते हैं। गन्ध, रस और स्पर्श ये भोग कहलाते हैं। . ८. लाभाशंसा प्रयोग - अपने तपश्चरण आदि के फल स्वरूप यह इच्छा करना कि मुझे यश, कीर्ति और श्रुतआदि का लाभ हो, लाभाशंसा प्रयोग कहलाता है। ९. पूजाशंसा प्रयोग - इहलोक में मेरी खूब पूजा और प्रतिष्ठा हो ऐसी इच्छा करना पूजाशंसा प्रयोग है। १०. सत्काराशंसा प्रयोग - इहलोक में वस्त्र, आभूषण आदि से मेरा आदर सत्कार हो ऐसी इच्छा करना सत्काराशंसा प्रयोग है। दशविध धर्म, स्थविर पुत्र दसविहे धम्मे पण्णत्ते तंजहा - गामधम्मे, णगरधम्मे, रट्ठधम्मे, पासंडधम्मे, कुलधम्मे, गणधम्मे, संघधम्मे, सुयधम्मे, चरित्तधम्मे, अत्थिकायधम्मे । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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