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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 महादुमा पण्णत्ता तंजहा - जंबू सुदंसणा, धायइरुक्खे, महाधायइरुक्खे, पउमरुक्खे, महापउमरुक्खे, पंच कूडसामलीओ । तत्थ णं दस देवा महिड्डिया जाव परिवसंति तंजहा - अणाढिए. जंबूहीवाहिवई, सुदंसणे पियदंसणे पोंडरीए महापोंडरीए पंच गरुला वेणुदेवा।
दुषम और सुषम काल के लक्षण, दस प्रकार के वृक्ष दसहि ठाणेहिं ओगाढं दुस्समं जाणेज्जा तंजहा - अकाले वरिसइ काले ण . वरिसइ, असाहू पूइज्जति साहू ण पूजंति, गुरुसु जणो मिच्छं पडिवण्णो, अमणुण्णा । सदा जाव फासा । दसहिं ठाणेहिं ओगाढं सुसमं जाणेज्जा तंजहा - अकाले ण वरिसइ तं चेव विवरीयं जाव मणुण्णा फासा । सुसमसुसमाए णं समाए दसविहा रुक्खा उवभोगत्ताए हव्वमागच्छंति तंजहा
मत्तंगया य भिंगा तुडियंगा दीव जोइ चित्तंगा ।
चित्तरसा मणियंगा गेहागारा अणियणा य ॥१॥ १३६॥ कठिन शब्दार्थ - अणुत्तरा - अनुत्तर, महादुमा - महागुम ।
भावार्थ - दूसरी कोई वस्तु जिससे बढ़ कर न हो अर्थात् जो सब से बढ़ कर हो उसे अनुत्तर कहते हैं। केवली भगवान् के दस बातें अनुत्तर होती है यथा - १. अनुत्तर ज्ञान - ज्ञानावरणीय कर्म के सर्वथा क्षय से केवलज्ञान उत्पन्न होता है। २. केवलज्ञान से बढ़कर दूसरा कोई ज्ञान नहीं हैं। इसलिए केवली भगवान् का ज्ञान अनुत्तर कहलाता है। ३. अनुत्तर दर्शन - दर्शनावरणीय अथवा दर्शन मोहनीय कर्म के सम्पूर्ण क्षय से केवलदर्शन उत्पन्न होता है। ४. अनुत्तर चारित्र - चारित्र मोहनीय कर्म के सर्वथा क्षय से अनुत्तर चारित्र उत्पन्न होता है। ५. अनुत्तर तप - केवली के शुक्ल ध्यानादि रूप अनुत्तर तप होता है। ६. अनुत्तर वीर्य - वीर्यान्तराय कर्म के सर्वथा क्षय से अनन्त वीर्य पैदा होता है। अनुत्तर क्षान्ति-क्षमा। ७. अनुत्तर मुक्ति - निर्लोभता। ८. अनुत्तर आर्जव - सरलता। ९. अनुत्तर मार्दव-मान का त्याग। १०. अनुत्तर लाघव - घाती कर्मों का सर्वथा क्षय हो जाने से उनके ऊपर संसार का बोझ नहीं रहता है। क्षान्ति आदि पांच बातें चारित्र के भेद हैं और चारित्र मोहनीय कर्म के क्षय से उत्पन्न होता है। ___ समय क्षेत्र यानी अढाई द्वीप में दस कुरु कहे गये हैं, यथा - पांच देवकुरु और पांच उत्तरकुरु । उन दस क्षेत्रों में दस बहुत बड़े महाद्रुम कहे गये हैं यथा - जम्बू सुदर्शन, धातकी वृक्ष, महाधातकी वृक्ष, पद्मवृक्ष, महापद्मवृक्ष और पांच कूटशाल्मली वृक्ष । उन दस वृक्षों पर दस महर्द्धिक यावत् एक पल्योपम की स्थिति वाले देव रहते हैं यथा - जम्बूद्वीप का अधिपति अनादृत देव सुदर्शन प्रियदर्शन पुण्डरीक महापुण्डरीक और पांच गरुड़ वेणुदेवता ।
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