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________________ स्थान १० ३४७ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 पडिमा, पर्युषणा कल्प, मोहनीय कर्म के तीस स्थान, आजाति स्थान - सम्मूर्छिम और गर्भज के उत्पत्ति स्थान । - प्रश्नव्याकरण दशा के दस अध्ययन कहे गये हैं यथा- उपमा, संख्या, ऋषिभाषित, आचार्य भाषित, महावीर भाषित, क्षोमक प्रश्न, कोमल प्रश्न, आदर्श प्रश्न, अंगुष्ठ प्रश्न, बाहु प्रश्न । बन्धदशा के दस अध्ययन कहे गये हैं यथा - बन्ध, मोक्ष,, देवर्द्धि, दशारमण्डल, आचार्य विप्रतिपत्ति, उपाध्याय विप्रतिपत्ति, भावना, विमुक्ति, शाश्वत कर्म ।। ___ द्विगृद्धिदशा के दस अध्ययन कहे गये हैं यथा - वाद, विवाद, उपपात, सुक्षेत्र, कृत्स्न, बयालीस स्वप्न, तीस महास्वप्न, सब बहत्तर स्वप्न. हार. राम. गप्त। ___दीर्घदशा के दस अध्ययन कहे गये हैं यथा - चन्द्र, सूर्य, शुक्र, श्री देवी, प्रभावती, द्वीप समुद्रोपपत्ति, बहुपुत्री, मन्दर, स्थविर सम्भूत विजय, स्थविर पद्म, उच्छ्वास निःश्वास। संक्षेपिकदशा के दस अध्ययन कहे गये हैं यथा - क्षुद्रविमान प्रविभक्ति, महत् विमान प्रविभक्ति, अङ्ग चूलिका वर्गचूलिका व्याख्याप्रज्ञप्ति चूलिका अरुणोपपात, वरुणोपपात, गरुड़ोपपात, वेलंधरोपपात, वैश्रमणोपपात । उत्सर्पिणी काल दस कोडाकोडी सागरोपम का होता है और अवसर्पिणी काल दस कोडाकोडी सागरोपम का होता है । विवेचन - छद्मस्थ मनुष्य दस बातों को सर्व भाव से न ही देख सकता और न ही जानता है। अर्थात् अतिशय ज्ञान रहित छद्मस सर्व भाव से इन बातों को जानता और देखता नहीं है। यहाँ पर अतिशय ज्ञान रहित विशेषण देने का यह अभिप्राय है कि अवधि ज्ञानी छद्मस्थ होते हुए भी अतिशय ज्ञानी होने के कारण परमाणु आदि को यथार्थ रूप से जानता और देखता है किन्तु अतिशय ज्ञान रहित छद्मस्थ नहीं जान या देख सकता है। वे दस बोल ये हैं - १. धर्मास्तिकाय २. अधर्मास्तिकाय ३. आकाशास्तिकाय ४. वायु ५. शरीर रहित जीव ६. परमाणु पुद्गल ७. शब्द ८. गन्ध ९. यह पुरुष प्रत्यक्ष ज्ञानशाली केवली होगा या नहीं १०. यह पुरुष सर्व दुःखों का अन्त कर सिद्ध बुद्ध यावत् मुक्त होगा या नहीं। - इन दस बातों को निरतिशय ज्ञानी छद्मस्थ सर्व भाव से न जानता और न देख सकता है किन्तु केवलज्ञान और केवलदर्शन के धारक अरिहन्त जिन केवली उपरोक्त दस ही बातों को सर्व भाव से जानते और देखते हैं। यहाँ मूल गाथा में दिये गये नाम पाठान्तर. के मालूम होते हैं क्योंकि वर्तमान में उपलब्ध अन्तगडदशाङ्ग सूत्र के प्रथम वर्ग में तो ये नाम हैं - गौतम, समुद्र, सागर, गम्भीर, स्तिमित, अचल, कम्पिल, अक्षोभ, प्रसेनजित और विष्णु । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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