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स्थान १०
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__ सत्यामृषा - जिस भाषा में कुछ अंश सत्य और कुछ असत्य हो उसे सत्यामृषा यानी मिश्र भाषा कहते हैं । उसके दस भेद हैं यथा - १. उत्पनमिश्रित - संख्या पूरी करने के लिए नहीं उत्पन्न हुओं के साथ उत्पन्न हुओं को मिला देना, जैसे किसी गांव में कम या अधिक बालक उत्पन्न होने पर भी यह कहना कि आज इस गांव में दस बालक उत्पन्न हुए हैं । २. विगतमिश्रित - मरण के विषय में इसी प्रकार कहना कि आज दस आदमी मरे हैं । ३. उत्पन्नविगतमिश्रित - जन्म और मृत्यु दोनों के विषय में अयथार्थ कहना, जैसे कि आज इस गांव में दस बालक जन्मे हैं और दस ही आदमी मरे हैं । ४. जीव मिश्रित - जीवित तथा मरे हुए बहुत से शंख आदि के ढेर को देख कर यह कहना कि - अहो ! यह कितना बड़ा जीवों का ढेर है । जीवितों को लेने से यह वचन सत्य है और मरे हुओं को लेने से असत्य है । इसलिए यह भाषा जीवमिश्रित सत्यामृषा है । ५. अजीवमिश्रित - उपरोक्त शंखों के ढेर को अजीवों का ढेर बताना । जीवाजीवमिश्रित - उपरोक्त शंखों के ढेर में अयथार्थ रूप से यह बताना कि इस ढेर में इतने जीव हैं और इतने अजीव हैं । ६. अनन्त मिश्रित - अनन्तकायिक तथा प्रत्येक शरीरी वनस्पतिकाय के ढेर को देख कर कहना कि 'यह अनन्तकाय का ढेर है ।' प्रत्येक मिश्रित - अनन्तकायिक तथा प्रत्येक शरीरी वनस्पतिकाय के ढेर को देख कर कहना कि - 'यह प्रत्येक वनस्पति काय का ढेर हैं ।' अद्धा मिश्रित - दिन या रात आदि काल के विषय में मिश्रित वाक्य बोलना जैसे जल्दी के कारण कोई दिन रहते कहे - ठठो, चलो रात हो गई । अथवा रात रहते कहे-उठो-सूरज निकल आया । अद्धाद्धामिश्रित-दिन या रात के एक भाग को अद्धाद्धा कहते हैं । उन दोनों के लिए मिश्रित वचन बोलना अद्धाद्धा मिश्रित है, जैसे - जल्दी करने वाला कोई मनुष्य दिन के पहले पहर में भी कहे कि - दो पहर हो गया । अथवा रात के पहले पहर में भी कहे कि - 'आधी रात हो गई' इत्यादि अद्धाद्धा मिश्रित सत्यामृषा वचन है ।
दृष्टिवाद के नाम ___ दिट्ठिवायस्स णं दस णामधिज्जा पण्णत्ता तंजहा - दिट्ठिवाए इवा, हेउवाए इ वा, भूयवाए इवा, तच्चावाए इवा, सम्मावाए इवा, धम्मावाए इवा, भासाविजए वा, पुव्वगए इवा, अणुजोगगए इ वा, सव्वपाणभूयजीव सत्तसुहावहे इ वा ।
. शस्त्र दसविहे सत्य पण्णत्ते तंजहा - . सत्थमग्गी विसं लोणं, सिणेहो खारमंबिलं ।
दुप्पउत्तो मणो वाया, काया भावो य अविरई ॥१॥
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