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श्री स्थानांग सूत्र
होने पर भी किसी व्यक्ति का या किसी वस्तु का वैसा नाम रख कर उस नाम से पुकारना नाम सत्य है। जैसे किसी ने अपने लड़के का नाम कुलवर्द्धन रखा, लेकिन उसके पैदा होने के बाद कुल का हास होने लगा, फिर भी उसे कुलवर्धन कहना नाम सत्य है । अमरावती देवों की नगरी का नाम है, वैसी बातें न होने पर भी किसी गांव को अमरावती कहना नाम सत्य है । ५. रूप सत्य - वास्तविकता न होने पर भी रूप विशेष को धारण करने से किसी व्यक्ति को उस नाम से पुकारना रूप सत्य है, जैसे साधु के गुण न होने पर भी साधु वेश वाले पुरुष को साधु कहना । ६. प्रतीत्य सत्य अर्थात् अपेक्षा सत्य - किसी अपेक्षा से दूसरी वस्तु को छोटी बड़ी आदि कहना अपेक्षा सत्य या प्रतीत्य सत्य है । जैसे मध्यमा अंगुली की अपेक्षा अनामिका को छोटी कहना और कनिष्ठा की अपेक्षा अनामिका को बड़ी कहना । ७. व्यवहार सत्य - जो बात व्यवहार में बोली जाती है वह व्यवहार सत्य है, जैसे - पर्वत पर पड़ी हुई लकड़ियों के जलने पर भी पर्वत जलता है, यह कहना । रास्ते के स्थिर होने पर भी कहना कि यह मार्ग अमुक नगर को जाता है । गाडी के पहुंचने पर भी यह कहना कि 'गांव आ गया।' ८. भाव सत्य - निश्चय की अपेक्षा कई बातें होने पर भी किसी एक की अपेक्षा से उसमें वही बताना, जैसे निश्चय की अपेक्षा बगुले में पांचों वर्ण होने पर भी उसे सफेद कहना । ९. योग सत्य - किसी चीज के सम्बन्ध से उस व्यक्ति को उस नाम से पुकारना, जैसे लकड़ी ढोने वाले को लकडी के नाम से पुकारना । १०. उपमा सत्य - किसी बात के समान होने पर एक वस्तु की दूसरी से तुलना करना, जैसे जल से लबालब भरे हुए तालाब को समुद्र कहना, चन्द्रमा के समान सुन्दर मुख वाली स्त्री को चन्द्रमुखी कहना, उपमा सत्य है।
मृपावाद पानी असत्य वचन दस प्रकार का कहा गया है पथा - १. क्रोषनिस्त - जो असत्य क्रोष में बोला जाय, जैसे क्रोष में कोई दूसरे को दास न होने पर भी पास कह देता है । २. मान निमत - मान अर्थात् घमण्ड में बोला हुआ वचन । जैसे घमण में आकर कोई गरीब भी अपने को धनवान् कहने लगता है । ३. माषा निस्त- कपट से अर्थात् पूसरे को धोखा देने के लिए बोला हुमा छ । ४. लोभानिस्त - लोभ में भाकर बोलाएमा पचन, जैसे कोई व्यापारी घोड़ी कीमत में खरीपीई पाको भाषक कीमत की बता देता है ।५. प्रेममिस्त - मत्पन्न प्रेम में निकला हुमा असत्य वचन, जैसे प्रेम में आकर कोई कहता है कि मैं तो आपका दास हूँ । ६. द्वेषनिसृत - द्वेष से निकला हुआ असत्य वचन, जैसे द्वेष के वश कोई किसी गुणी पुरुष को भी निर्गुणी कह देता है। ७. हास्यनिसृत - हँसी में झूठ बोलना । ८. भयनिसृत - चोर आदि से डर कर असत्य वचन बोलना । ९. आख्यायिका निसृत - कहानी आदि कहते समय उसमें झूठ वचन कहना या उसमें गप्प मारना । १०. उपघातनिसृत - प्राणियों की हिंसा के लिए बोला गया असत्य वचन, जैसे भले आदमी को भी चोर कह देना ।
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