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तप के द्वारा आत्मा अनेक भवों में उपार्जित अनेक दुःखों के कारणभूत अष्ट
९. तप बल - कर्मों की निकाचित कर्मग्रन्थि को भी क्षय कर डालता है । अतः तप भी बल माना गया है। १०. वीर्य बल जिससे गमनागमनादि विचित्र क्रियाएं की जाती हैं, एवं जिसके प्रयोग से सम्पूर्ण निराबाध सुख की प्राप्ति हो जाती है उसे वीर्य बल कहते हैं। यह आत्म शक्ति है। सत्य, मृषा और मिश्र भाषा
दसविहे सच्चे पण्णत्ते तंजहा
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स्थान १०
जणवय सम्मय ठवणा, णामे रूवे पडुच्च सच्चे य । ववहार भाव जोगे, दसमे ओवम्म सच्चे य ॥ १ ॥ दसविहे मोसे पण्णत्ते तंजहा -
कोहे माणे माया लोभे पिज्जे तहेव दोसे य । हास भए अक्खाइय, उवघायणिस्सिए दसमे ॥ २॥ दसविहे सच्चामोसे पण्णत्ते तंजहा उप्पण्णमीसए, विगयमीसए, उप्पण्णविगयमीसए, जीवमीसए, अजीवमीसए, जीवाजीवमीसए, अणंतमीसए, परित्तमीसए, अद्धामीसए, अद्धद्धामीसए ॥ १२६ ॥
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कठिन शब्दार्थ - पडुच्च सच्चे प्रतीत्य सत्य, ओवम्म सच्चे- उपमा सत्य, अक्वाइय = आख्यायिका, उप्पण्ण विगय़मीसए - उत्पन्न विगत मिश्रित, अद्धद्धामीसए - अद्धाद्धा मिश्रित ।
भावार्थ- सत्य - जो वस्तु जैसी है, उसे वैसी ही बताना सत्य है । एक जगह एक शब्द किसी अर्थ को बताता है और दूसरी जगह दूसरे अर्थ को । ऐसी हालत में अगर वक्ता की विवक्षा ठीक है तो दोनों ही अर्थों में वह शब्द ठीक है । इस प्रकार सत्य वचन दस प्रकार का है यथा - १. जनपद सत्यजिस देश में जिस वस्तु का जो नाम हो, उस देश में वह नाम सत्य हैं, जैसे कोंकण देश में पानी को पिच्छ कहते हैं । २. सम्मत सत्य - प्राचीन आचार्यों ने और विद्वानों ने जिस शब्द का जो अर्थ मान लिया है उस अर्थ वह शब्द सम्मत सत्य है । जैसे पङ्कज का यौगिक अर्थ है कीचड़ से पैदा होने वाली वस्तु । कीचड़ से मेढ़क, शैवाल, कमल आदि बहुत सी वस्तुएं पैदा होती हैं, फिर भी शब्दशास्त्र
विद्वानों ने पङ्कज शब्द का अर्थ सिर्फ कमल मान लिया है। इसलिए पङ्कज शब्द से कमल ही लिया जाता है, मेंढ़क आदि नहीं । यह सम्मत सत्य है । ३. स्थापना सत्य - समान और असमान आकार वाली वस्तु में किसी की स्थापना करके उसको उस नाम से कहना स्थापना सत्य है । जैसे शतरंज के मोहरों को हाथी, घोड़ा, आदि कहना, जम्बूद्वीप के नक्शे को जम्बूद्वीप कहना । ४. नाम सत्य - गुण न
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