________________
स्थान १०
२९३
वेयावच्चे, उवझाय वेयावच्चे, थेर वेयावच्चे, तवस्सि वेयावच्चे, गिलाण वेयावच्चे, सेह वेयावच्चे, कुल वेयावच्चे, गण वेयावच्चे, संघ वेयावच्चे, साहम्मिय वेयावच्चे।
जीव परिणाम, अजीव परिणाम दसविहे जीव परिणामे पण्णत्ते तंजहा - गइ परिणामे, इंदिय परिणामे, कसाय परिणामे, लेस्सा परिणामे, जोग परिणामे, उवओग परिणामे, णाण परिणामे, दंसण परिणामे, चरित परिणामे, वेय परिणामे । दसविहे अजीव परिणामे पण्णते तंजहा - बंधण परिणामे, गइ परिणामे, संठाण परिणामे, भेय परिणामे, वण्ण परिणामे, रस परिणामे, गंध परिणामे, फास परिणामे, अगुरुलहु परिणामे, सद्द परिणामे॥११७॥ ___ कठिन शब्दार्थ - णाग सुवण्णा - नागकुमार सुवर्णकुमार, उत्तरिए - उत्कृष्ट, अहोइए - अवधि, पव्वज्जा - प्रव्रज्या, छंदा- छंद, रोसा - रोष से, परिजुण्णा - परिदयूना, सुविणा - स्वप्न से, पडिस्सुया - प्रतिश्रुत, सारणिया - स्मरण आदि, रोगिणिया - रोगिणिका, अणाढिया - अनादर, देवसण्णत्ति - देवसंज्ञप्ति, वच्छाणुबंधिया - वत्सानुबंधिका, सेह वेयावच्चे - शैक्ष वैयावृत्य, अगुरुलहु परिणामे - अगुरुलघु परिणाम। - भावार्थ - दस कारणों से "मैं ही सब से बड़ा हूँ" इस प्रकार मनुष्य मद करता है यथा - जातिमद, कुलमद, यावत् ऐश्वर्यमद, नागकुमार सुवर्णकुमार मेरे पास आते हैं, इस प्रकार मनुष्य मद • करता है और सामान्य पुरुषों की अपेक्षा मुझे उत्कृष्ट प्रधान अवधिज्ञान, अवधिदर्शन उत्पन्न हुआ है, इस प्रकार मनुष्य मद करता है ।
दस प्रकार की समाधि कही गई है यथा - प्राणातिपात से निवृत्ति, मृषावाद से निवृत्ति, अदत्तादान से निवृत्ति, मैथुन से निवृत्ति, परिग्रह से निवृत्ति, ईर्या समिति, भाषा समिति, एषणा समिति, आदानभाण्ड मात्र निक्षेपणा समिति, उच्चारप्रस्रवण खेलजल्ल सिंघाण परिस्थापनिका समिति । दस प्रकार की असमाधि कही गई है यथा - प्राणातिपात यावत् परिग्रह इन पांच पापों का सेवन करना, ईर्या असमिति और उच्चार प्रस्रवण खेलजल्ल सिंघाण परिस्थापनिका असमिति ।
दस प्रकार की प्रव्रज्या कही गई है यथा - १. छन्द यानी इच्छा से-अपनी या दूसरे की इच्छा से दीक्षा लेना, जैसे गोविन्दवाचक और सुन्दरीनन्द ने अपनी इच्छा से दीक्षा ली और भवदत्त ने अपने भाई की इच्छा से दीक्षा ली। २. रोप यानी क्रोध से दीक्षा लेना, जैसे शिवभूति । ३. परित्यूना यानी दरिद्रता के कारण दीक्षा लेना, जैसे लकड़हारे ने दीक्षा ली थी। ४. स्वप्न से - विशेष प्रकार का स्वप्न आने से दीक्षा लेना, जैसे - पुष्पचूला ने दीक्षा ली। ५. प्रतिश्रुत - आवेश में आकर या वैसे ही प्रतिज्ञा कर लेने से दीक्षा लेना । जैसे शालिभद्र के बहनोई धन्ना सेठ ने दीक्षा ली थी। ६. स्मरण आदि-किसी के द्वारा कुछ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org