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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 कहने से या कोई दृश्य देखने से जातिस्मरण ज्ञान होना और पूर्वभव को जान कर दीक्षा ले लेना। जैसेभगवान् मल्लिनाथ के द्वारा पूर्वभव का स्मरण कराने पर प्रतिबुद्धि आदि छह राजाओं ने दीक्षा ली थी। ७. रोगिणिका - रोग के कारण संसार से विरक्त होकर दीक्षा लेना, जैसे - सनत्कुमार चक्रवर्ती ने दीक्षा ली थी ८. अनादर - किसी के द्वारा अपमानित होने पर दीक्षा ले लेना। जैसे :- नन्दिषेण और अनादृतकुमार ने दीक्षा ली ९. देवसंज्ञप्ति - देवों के द्वारा प्रतिबोध देने पर दीक्षा लेना, जैसे-मेतार्यमुनि । १०. वत्सानुबन्धिका - पुत्र स्नेह के कारण दीक्षा लेना, जैसे-वैरस्वामी की माता ने दीक्षा ली।
दस प्रकार का श्रमणधर्म - साधुधर्म कहा गया है यथा - १. क्षमा - क्रोध पर विजय प्राप्त करना, क्रोध का कारण उपस्थित होने पर भी शान्ति रखना २. मुक्ति - लोभ पर विजय प्राप्त करना, पौद्गलिक वस्तुओं पर आसक्ति न रखना ३. आर्जव - कपट रहित होना, माया, दम्भ, ठगी आदि का सर्वथा त्याग करना ४. मार्दव - मान का त्याग करना, मद न करना, मिथ्याभिमान को सर्वथा छोड़ देना ५. लाघव - यानी द्रव्य और भाव से हल्का रहना ६. सत्य - सत्य, हित और मित वचन बोलना ७. संयम - मन, वचन, काया की शुभ प्रवृत्ति करना, अशुभ प्रवृत्ति को रोकना, पांच इन्द्रियों का दमन करना, चार कषाय को जीतना, मन वचन काया की प्रवृत्ति को रोकना, प्राणातिपात आदि पांच । पापों से निवृत्त होना, इस तरह १७ प्रकार के संयम का पालन करना ८. तप -- इच्छा को रोकना एवं बारह प्रकार का तप करना ९. त्याग - किसी वस्तु पर मूर्छा न रखना और १०. ब्रह्मचर्य - नववाड सहित पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना ।।
अपने से बड़े या असमर्थ की सेवा सुश्रूषा करना, वैयावच्च - वैयावृत्य कहलाता है । इसके दस भेद हैं यथा - आचार्य की वेयावच्च, उपाध्याय की वेयावच्च, स्थविर की वेयावच्च, तपस्वी की वेयावच्च, ग्लान यानी रोगी की वेयावच्च, शैक्ष अर्थात् नवदीक्षित साधु की वेयावच्च । कुल अर्थात् एक आचार्य के शिष्य परिवार की वेयावच्च । गण अर्थात् साथ रहने वाले साधु समूह की वेयावच्च । संघ की वेयावच्च और साधर्मिक की वेयावच्च । • दस प्रकार का जीव परिणाम कहा गया है यथा - गति परिणाम - चार गतियों में से किसी एक गति की प्राप्ति होना । इन्द्रिय परिणाम - पांच इन्द्रियों में से किसी भी इन्द्रिय की प्राप्ति होना । कषाय परिणाम - क्रोध मान माया लोभ इन कषायों का होना । लेश्या परिणाम - कृष्णादि छह लेश्याओं में से किसी भी लेश्या की प्राप्ति होना। योग परिणाम - मन वचन काया रूप योगों की प्राप्ति होना । उपयोग परिणाम - उपयोगों की प्राप्ति होना। ज्ञान परिणाम - ज्ञान की प्राप्ति होना। दर्शन परिणाम - सम्यक्त्व, मिथ्यात्व और मिश्र इन में से किसी दर्शन की प्राप्ति होना। चारित्र परिणाम - सामायिकादि पांच चारित्रों में से किसी चारित्र की प्राप्ति होना। वेद परिणाम- स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद इन वेदों में से किसी एक वेद की प्राप्ति होना। दस प्रकार का अजीव परिणाम कहा गया है यथा - बन्धन परिणाम -
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