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श्री स्थानांग सूत्र
लेना उपकरण संवर है। अथवा बिखरे हुए वस्त्रादि को समेट कर रखना उपकरण संवर है। यह उपकरण संवर समग्र औधिक उपधि की अपेक्षा कहा गया है। जो वस्त्र पात्रादि उपधि एक बार ग्रहण करके.वापिस न लौटाई जाय उसे औधिक कहते हैं।
१०. सूची कुशाग्र संवर - सूई और कुशाग्र आदि वस्तुएं जिन के बिखरे रहने से शरीर में चुभने आदि का डर है, उन सब को समेट कर रखना। सामान्य रूप से यह संवर सारी औपग्रहिक उपधि के लिए है। जो वस्तुएं आवश्यकता के समय गृहस्थ से लेकर काम होने पर वापिस कर दी जायं उन्हें औपग्रहिक उपधि कहते हैं। जैसे सूई आदि।
अन्त के दो द्रव्य संवर हैं और पहले आठ भाव संवर हैं।
असंवर - संवर से विपरीत अर्थात् कर्मों के आगमन को असंवर कहते हैं। इसके भी संवर की तरह दस भेद हैं। इन्द्रिय, योग और उपकरणादि को वश में न रख कर खुले रखना अथवा बिखरे पड़े रहने देना क्रमशः दस प्रकार का असंवर है।
मद के कारण दसहिं ठाणेहिं अहमंतीति थंमिज्जा तंजहा - जाइ मएण वा, कुल मएण वा जाव इस्सरिय मएण वा, णागसुवण्णा मे अंतियं हव्यमागच्छंति, पुरिसधम्माओ वा मे उत्तरिए अहोइए णाणदंसणे समुप्पण्णे।
समाधि-असमाधि दसविहा समाहि पण्णत्ता तंजहा - पाणाइवाय वेरमणे, मुसावाय वेरमणे, अदिण्णादाण वेरमणे, मेहुण वेरमणे, परिग्गहा वेरमणे, ईरिया समिई, भासा समिई, एसणा समिई, आयाण भंडमंतणिक्खेवणा समिई, उच्चारपासवणखेलजल्लसिंघाण परिट्ठावणिया समिई ।दसविहा असमाहि पण्णता तंजहा - पाणाइवाए जाव परिग्गहे, इरिया असमिई जाव उच्चार पासवण खेलजल्ल सिंघाण परिठ्ठावणिया असमिई ।
प्रवज्या, श्रमण धर्म दसविहा पव्वज्जा पण्णत्ता तंजहाछंदा रोसा परिजुण्णा सुविणा पडिस्सुया चेव । सारणिया रोगिणीया अणाढिया देवसण्णत्ती वच्छाणुबंधिया ॥
दसविहे समणधम्मे पण्णत्ते तंजहा - खंती, मुत्ती, अजवे, महवे, लाघवे, सच्चे, संजमे, तवे, चियाए, बंभचेरवासे। दसविहे वेयावच्चे पण्णत्ते तंजहा - आयरिय
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