________________
स्थान ९
२६९ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 में नीलवंत वर्षधर पर्वत पर नौ कूट कहे गये हैं यथा - सिद्ध, नीलवन्त, विदेह, सीता, कीर्ति, नारीकान्ता, अपरविदेह, रम्यक और उपदर्शन ।। १०॥
जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत के उत्तर में एरवत दीर्घ वैतात्य पर्वत पर नौ कूट कहे गये हैं यथा - सिद्ध, रत्न, खन्दक, मणिभद्र, वैताब्य, पूर्णभद्र, तिमिस्रगुफा, एरवत और वैश्रमण । ये एरवत के कूटों के नाम हैं ।। ११॥
.. भ० पार्श्वनाथ का देहमान, भ० महावीर के समय तीर्थकर गोत्र बांधने वाले जीव - पासे णं अरहा पुरिसादाणीए वज्जरिसहणाराय संघयणे समचउरंस संठाणसंठिए णव रयणीओ उई उच्चत्तेणं होत्था । समणस्स भगवओ महावीरस्स तित्यंसि णवहिं जीवेहिं तित्थयरणामगोत्ते कम्मे णिव्वत्तिए तंजहा - सेणिएणं, सुपासेणं, उदाइणा, पोट्टिलेणं अणगारेणं, दढाउणा, संखेणं, सयएणं सुलसाए सावियाए, रेवईए॥११०॥
कठिन शब्दार्थ - तित्थयरणामगोत्ते - तीर्थंकर नाम गोत्र, णिव्यत्तिए - बांधा था,
भावार्थ - पुरुषादानीय यानी पुरुषों में आदरणीय वप्रऋषभ नाराच संहनन वाले, समचतुरस्त्र संस्थान वाले तीर्थकर भगवान् श्री पार्श्वनाथ स्वामी के शरीर की ऊंचाई नौ हाथ थी । श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के शासन में नौ जीवों ने तीर्थकर गोत्र बांधा था उनके नाम इस प्रकार हैं - श्रेणिक राजा, सुपार्श्व - भगवान् महावीर के चाचा । उदायी - कोणिक राजा का पुत्र । पोट्टिल अनगार, दृढायु, शंख श्रावक, शतक श्रावक यानी पोखलीश्रावक, सुलसा श्राविका और रेवती गाथापली - भगवान् महावीर स्वामी को औषधि बहराने वाली श्राविका ।
विवेचन - जिस नाम कर्म के उदय से जीव तीर्थकर रूप में उत्पन्न हो उसे तीर्थकर गोत्र नामकर्म कहते हैं... ..
भगवान् महावीर के समय में नौ व्यक्तियों ने तीर्थकर गोत्र बांधा था। उनके नाम इस प्रकार हैं - १. श्रेणिक राजा। २. सुपार्श्व - भगवान् महावीर के चाचा।
३. उदायी - कोणिक का पुत्र । कोणिक के बाद उसने पाटलिपुत्र को अपनी राजधानी बनाई थी। वह शास्त्रज्ञ और चारित्रवान् गुरु की सेवा किया करता था। आठम चौदस वगैरह पर्वो पर पौषध आदि किया करता था। धर्माराधन में लीन रहता और श्रावक के व्रतों को उत्कृष्ट रूप से पालता था। किसी शत्रुराजा ने उदायी का सिर काट कर लाने वाले के लिए बहुत पारितोषिक.देने की घोषणा कर रक्खी थी। साधु के वेश में इस दुष्कर्म को सुसाध्य समझ कर एक अभव्य जीव ने दीक्षा ली। बारह वर्ष तक द्रव्य संयम का पालन किया। दिखावटी विनय आदि से सब लोगों में अपना विश्वास जमा लिया।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org