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श्री स्थानांग सूत्र
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एक दिन उदायी राजा ने पौषध किया। रात को उस धूर्त साधु ने छुरी से राजा का सिर काट लिया । उदायी ने शुभ ध्यान करते हुए तीर्थंकर गोत्र बाँधा ।
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४. पोट्टिल अनगार - अनुत्तरोववाई सूत्र में पोट्टिल अनगार की कथा आई है । हस्तिनागपुर में भद्रा नाम की सार्थवाही का एक लड़का था। बत्तीस स्त्रियाँ छोड़कर भगवान् महावीर का शिष्य हुआ । एक महीने की संलेखना के बाद सर्वार्थ सिद्ध नामक विमान में उत्पन्न हुआ। वहाँ से चवकर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा और मोक्ष प्राप्त करेगा।
यहाँ बताया गया है कि वे तीर्थंकर होकर भरत क्षेत्र से ही सिद्धि प्राप्त करेंगे। इससे मालूम होता है ये पोट्टिल अनगार दूसरे हैं ।
५. दृढायु - इनका वृत्तान्त प्रसिद्ध नहीं है।
६ - ७ शंख और पोखली (शतक) श्रावक ।
चौथे आरे में जिस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी भरत क्षेत्र में भव्य प्राणियों को प्रतिबोध दे रहे थे, उस समय श्रावस्ती नाम की एक नगरी थी। वहाँ कोष्ठक नाम का चैत्य था । श्रावस्ती नगरी शंख आदि बहुत से श्रमणोपासक रहते थे । वे धन धान्य से सम्पन्न थे, विद्या बुद्धि और शक्ति तीनों के कारण सर्वत्र सन्मानित थे। जीव अजीव आदि तत्त्वों के जानकार थे।
शंख श्रावक की उत्पला नाम की भार्या थी । वह बहुत सुन्दर, सुकुमार तथा सुशील थी। नव तत्त्वों को जानती थी । श्रावक के व्रतों को विधिवत् पालती थी। उसी नगरी में पोखली नाम का श्रावक भी रहता था। बुद्धि, धन और शक्ति से सम्पन्न था। सब तरह से अपरिभूत तथा जीवादित्व
जानकार था।
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एक दिन की बात है, श्रमण भगवान् महावीर स्वामी विहार करते हुए श्रावस्ती नगरी के उद्यान पधारे। सभी नागरिक धर्मकथा सुनने के लिए गए। शंख आदि श्रावक भी गए। उन्होंने भगवान् को वन्दना की, धर्म कथा सुनकर बहुत प्रसन्न हुए। भगवान् के पास जाकर वन्दना नमस्कार करके प्रश्न पूछे। इसके बाद परम आनन्दित होते हुए भगवान् को फिर वन्दना की । कोष्ठक नामक चैत्य से निकल कर श्रावस्ती नगरी की ओर प्रस्थान किया ।
मार्ग में शंख ने दूसरे श्रावकों से कहा- देवानुप्रियो ! घर जाकर आहार आदि सामग्री तैयार करो। हम लोग पाक्षिक पौषध * (दया) अङ्गीकार करके धर्म की आराधना करेंगे। सब श्रावकों ने शंख की यह बात मान ली।
* आठम चौदस या पक्खी आदि पर्व कहलाते हैं। उन तिथियों पर पन्द्रह पन्द्रह दिन से जो पौषध किया जाय वह पाक्षिक पौषध है। अशनादि चारों प्रकार का आहार करते हुए जो पौषध किया जाए उसको दया कहते हैं। छह कायों की दया पालते हुए सब प्रकार के सावध व्यापार का एक करण एक योग या दो करण तीन योग से त्याग करना दया है।
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