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स्थान ९
२५७
वासुदेवों के पूर्व भव के नाम -
१. विश्वभूति २. पर्वतक ३. धनदत्त ४. समुद्रदत्त ५. ऋषिपाल ६. प्रियमित्र ७. ललितमित्र । ८. पुनर्वसु ९. गंगदत्त।
बलदेव और वासुदेवों के पूर्वभव के आचार्यों के नाम - १. सम्भूत २. सुभद्र ३. सुदर्शन ४. श्रेयांस ५. कृष्ण ६. गंगदत्त ७. आसागर ८. समुद्र ९. द्रुमसेन।
पूर्वभव में बलदेव और वासुदेवों के ये आचार्य थे। इन्हीं के पास उत्तम करनी करके इन्होंने बलदेव या वासुदेव का आयुष्य बाँधा था। बलदेव और वासुदेव दोनों सगे भाई होते हैं। इन दोनों के पिता एक होते हैं। किन्तु मातायें भिन्न-भिन्न होती हैं। इसीलिए माताओं के नाम भिन्न-भिन्न बताये हैं और पिताओं के नाम एक बताये हैं।
यद्यपि लवण समुद्र में ५०० योजन तक के मत्स्य होते हैं। परन्तु गंगा सिन्धु नदियाँ जगती के नीचे होकर लवण समुद्र में मिलती हैं वहाँ नदी मुख में भरत क्षेत्र की खाडी में नौ योजन के मत्स्य (मच्छ) ही आते हैं। यह लोकानुभाव (लोक का स्वभाव) ऐसा ही है।
महानिधियाँ एगमेगे णं महाणिही णव णव जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ते । एगमेगस्स णं. एण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स णव महाणिहीओ पण्णत्ताओ तंजहा -
.. णेसप्ये पंडुयए पिंगलए सबरयण महापउमे ।
काले य महाकाले, माणवग महाणिही संखे ॥१॥ णेसप्पम्मि णिवेसा, गामागरणगर पट्टणाणं च । दोणमुहमंडवाणं, खंधाराणं गिहाणं च ॥ २॥. गणियस्स य बीयाणं, माणुम्माणस्स जं पमाणं च । धण्णस्स य बीयाणं, उप्पत्ती पंडुए भणिया ॥३॥ सव्वा आभरणविही, पुरिसाणं जा य होइ महिलाणं । आसाण य हत्थीण य, पिंगलगणिहिम्मि सा भणिया. ॥ ४॥ रयणाइं सव्वरयणे, चोहसपवराई चक्कवट्टिस्स । उप्पज्जति एगिदियाई, पंचिंदियाइं च ॥५॥ वत्थाण य उप्पत्ती, णिप्पत्ती चेव सव्वभत्तीणं । रंगाण य धोयाण य, सव्वा एसा महापउमे ॥६॥
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