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श्री स्थानांग सूत्र
८. प्रचला प्रचला - चलते फिरते जिसको नींद आती है उसकी नींद को 'प्रचला प्रचला' कहते हैं। जिस कर्म के उदय से ऐसी नींद आवे उस कर्म को 'प्रचला प्रचला' दर्शनावरणीय कर्म कहते हैं।
९. स्त्यानगृद्धि - जो दिन में सोचे हुए काम को रात में नींद की हालत में कर डालता है उस नींद को स्त्यानगृद्धि कहते हैं। जिस कर्म के उदय से ऐसी नींद आवे उसका नाम स्त्यान गृद्धि दर्शनावरणीय कर्म है। जब स्त्यानगृद्धि (स्त्यानद्धि) कर्म का उदय होता है तब वप्रऋषभ नाराच संहनन वाले जीव में वासुदेव का आधा बल आ जाता है। यदि उस समय उस जीव की मृत्यु हो जाय और उसने यदि पहले आयु न बांधी हो तो नरक गति में जाता है।
- नौ बलदेव, नौ वासुदेव, नौ प्रतिवासुदेव के नाम, माता पिता, पूर्वभव के नाम आदि का वर्णन समवायांग सूत्र के अनुसार जानना चाहिये।
बलदेव नौ - वासुदेव के बड़े भाई को बलदेव कहते हैं। बलदेव सम्यग्दृष्टि होते हैं वे अवश्य दीक्षा अंगीकार करते हैं। दीक्षा पालकर वे स्वर्ग या मोक्ष में ही जाते हैं। वर्तमान अवसर्पिणी काल के नौ बलदेवों के नाम इस प्रकार हैं -.
१. अचल २. विजय ३. भद्र ४. सुप्रभ ५. सुदर्शन ६. आनन्द ७. नन्दन ८. पद्म (रामचन्द्र) और ९. राम (बलराम बलभद्र)। इन में बलराम को छोड़ कर बाकी सब मोक्ष गए हैं। नवें बलराम पांचवें देवलोक में गए हैं।
वासुदेव नौ - प्रतिवासुदेव को जीत कर जो तीन खण्ड पर राज्य करता है उसे वासुदेव कहते हैं। इसका दूसरा नाम अर्धचक्री भी है। वर्तमान अवसर्पिणी के नौ वासुदेवों के नाम निम्न लिखित हैं। .
१. त्रिपृष्ठ २. द्विपृष्ठ ३. स्वयम्भू ४. पुरुषोत्तम ५. पुरुषसिंह ६. पुरुषपुण्डरीक ७. दत्त ८. नारायण (राम का भाई लक्ष्मण) ९. कृष्ण। __वासुदेव, प्रतिवासुदेव पूर्वभव में नियाणा करके ही उत्पन्न होते हैं। नियाणे के कारण वे शुभगति को प्राप्त नहीं करते हैं।
प्रतिवासुदेव नौ - वासुदेव जिसे जीत कर तीन खण्ड का राज्य प्राप्त करता है उसे प्रतिवासुदेव कहते हैं। वे नौ होते हैं। वर्तमान अवसर्पिणी के प्रतिवासुदेव नीचे लिखे अनुसार हैं -
१. अश्वग्रीव २. तारक ३. मेरक ४. मधुकैटभ (इनका नाम सिर्फ मधु है, कैटभ इनका भाई था। साथ साथ रहने से मधुकैटभ नाम पड़ गया) ५. निशुम्भ ६. बलि ७. प्रभाराज अथवा प्रह्लाद ८. रावण ९. जरासन्ध। ___ बलदेवों के पूर्वभव के नाम - अचल आदि नौ बलदेवों के पूर्वभव में क्रमशः नीचे लिखे नौ नाम थे -
१. विषनन्दी २. सुबन्धु ३. सागरदत्त ४. अशोक ५. ललित ६. वाराह ७. धर्मसेन ८. अपराजित ९. राजललित।
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