SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५८ श्री स्थानांग सूत्र काले कालण्णाणं, भव्व पुराणं च तीसु वासेसु । .. सिप्पसयं कम्माणि य, तिण्णि पयाए हियकराइं ॥॥ . ... लोहस्स य उप्पत्ती, होइ महाकालि आगराणं च । रुप्पस्स सुवण्णस्स य, मणिमोत्ति सिलप्पवालाणं ॥८॥ जोहाण य उप्पत्ती, आवरणाणं च पहरणाणं च । .. सव्वा य जुद्धणीई, माणवए दंडणीई य ॥९॥ णविही णाडगविही, कव्वस्स चउविहस्स उप्पत्ती । संखे महाणिहिम्मि, तुडियंगाणं च सव्वेसिं ॥१०॥ चक्कट्ठ पइट्ठाणा अदुस्सेहा य णव य विक्खंभे । बारसदीहा मंजूससंठिया, जण्हवीई मुहे ॥ ११॥ वेरुलियमणिकवाडा, कणगमया विविहरयणपडिपुण्णा ।। ससिसूर चक्कलक्खण अणुसमजुग बाहुवयणा य ॥१२॥ पलिओवमठिड्या, णिहिसरिणामा य तेसु खलु देवा । जेसिं ए आवासा, अक्किजा आहिवच्चा वा ॥ १३॥ एए णव णिहीओ, पभूयधणरयण संचयसमिद्धा । जे वसमुवगच्छंति, सव्वेसिं चक्कवट्ठीणं ॥ १४॥ १०४॥ कठिन शब्दार्थ - णेसप्पे - नैसर्प निधि में, पंडुयए - पाण्डुक निधि, पिंगलए - पिंगलक निधि, सव्वरयण - सर्वरत्न, गामागरणगरपट्टणाणं - ग्राम, आकर, नगर, पत्तनों का, दोणमुहमंडवाणं - द्रोणमुख मंडपों का, खंधाराणं - स्कन्धावार-सेना के पडावों का, उप्पत्ती - उत्पत्ति, णिप्पत्ती - निष्पत्ति, सिप्पसयं - शिल्पशत-सौ प्रकार का शिल्प, पयाए - प्रजा के, हियकराई - हित के लिये, णट्टविही - नृत्य विधि, णाडगविही - नाटक विधि, कव्वस्स - काव्य की, तुडियंगाणं - बाजों की, चक्कपाटाणा : चक्रों पर प्रतिष्ठित, मंजूस संठिया - पेटी के आकार के समान, ससिसूर चक्कलक्खण अणुसम जुग बाहु वयणा - चन्द्र, सूर्य, चक्र लक्षण, समान स्तम्भ और दरवाजों वाली, आहिवच्चा - . आधिपत्य, पभूयधणरयणसंचयसमिद्धा - प्रचुर धन रल संचय करने वाली। . __ भावार्थ - महानिधि - चक्रवर्ती के विशाल निधान अर्थात् खजाने को महानिधि कहते हैं । प्रत्येक महानिधान नौ नौ योजन विस्तारवाला होता है । प्रत्येक चक्रवर्ती राजा के नौ महानिधियाँ कही गई हैं यथा - नैसर्प, पाण्डुक, पिङ्गलक, सर्वरत्न, महापद्म, काल, महाकाल, माणवक और शंख ।। १॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy