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स्थान ८
और महोरग गंधर्व । इन आठ वाणव्यन्तर देवों के आठ चैत्यवृक्ष कहे गये हैं । यथा - १. पिशाच जाति के देवों का कदम्ब वृक्ष है । २. यक्ष जाति के देवों का वट वृक्ष हैं । ३. भूत जाति के देवों का तुलसी वृक्ष है । ४. राक्षस जाति के देवों का कण्डक वृक्ष है । ५. किन्नर जाति के देवों का अशोक वृक्ष है । ६. किंपुरुष जाति के देवों का चम्पक वृक्ष है । ७. भुजंग यानी महोरग जाति के देवों का नागवृक्ष है और ८. गन्धर्व जाति के देवों का तिन्दुक वृक्ष है ॥ १-२ ॥
इस रत्नप्रभा पृथ्वी के इस समतल भूमि भाग से आठ सौ योजन ऊपर सूर्य का विमान चलता है । आठ नक्षत्र चन्द्रमा के साथ प्रमर्द योग जोड़ते हैं । यथा - कृतिका, रोहिणी, पुनर्वसु, मघा, चित्रा, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा । इस जम्बूद्वीप के द्वार आठ योजन ऊंचे कहे गये हैं । सभी द्वीप समुद्रों के द्वार आठ आठ योजन ऊंचे कहे गये हैं ।
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पुरुष वेदनीय कर्म की जघन्य बन्ध स्थिति आठ वर्ष कही गई है । यशः कीर्ति नाम कर्म की बन्ध स्थिति आठ मुहूर्त की कही गई है । इसी तरह उच्चगोत्र कर्म की जघन्य बन्ध स्थिति आठ मुहूर्त की कही गई है । वेइन्द्रिय जीवों की जाती कुलकोडी आठ लाख कही गई है । जीवों ने आठ स्थान निर्वर्तित पुद्गलों का पापकर्म रूप से सञ्चय किया है । सञ्चय करते हैं और सञ्चय करेंगे । यथा प्रथम समय नैरयिक निर्वर्तित यावत् अप्रथम समय देव निर्वर्तित। इसी प्रकार चंय, उपचय यावत् अप्रथम समय देव निर्वर्तित । इसी प्रकार चय, उपचय यावत् निर्जरा तक कह देना चाहिए । आठ प्रदेशी स्कन्ध अनन्त कहे गये हैं । आठ प्रदेशावगाढ यानी आठ प्रदेशों को अवगाहन कर रहे हुए पुद्गल अनन्त कहे गये हैं । यावत् आठ गुण रूक्ष पुद्गल अनन्त कह गये हैं ।
विवेचन श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के १४००० श्रमणों में ८०० श्रमण पांच अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए जो भविष्य में निर्वाण पद को प्राप्त करेंगे। उनकी गति और स्थिति दोनों कल्याणकारी कही है। अनुत्तर विमानवासी देव एकान्त सम्यग्दृष्टि, परित्त संसारी, सुलभबोधि एवं आराधक होते हैं।
।। आठवाँ स्थान समाप्त ॥
॥ आठवाँ अध्ययन समाप्त ॥
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