________________
श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 पृथ्वी को देखकर प्रथम समय में ही रुक जाता है । ३ महान् शरीर वाले सांप को देखकर भय से या आश्चर्य से प्रथम समय में ही रुक जाता है । ४ महर्द्धिक देव यानी देवता की महान् ऋद्धि को यावत् महान् सुखों को देखकर आश्चर्य से प्रथम समय में ही रुक जाता है । ५ प्राचीन काल के बहुत से ऐसे महान् निधान जिनके स्वामी नष्ट हो गये हैं तथा स्वामियों के पुत्र, पौत्रादि भी नष्ट हो गये हैं, जिनको पहचानने के लिये रखे गये चिह्न भी नष्ट हो गये हैं, जिनके स्वामियों के गोत्र और घर भी नष्ट हो गये हैं, जिनके स्वामियों का तथा पुत्र पौत्रादि का सर्वथा विच्छेद हो गया है, जिनके पहचान के चिह्न सर्वथा - नष्ट हो गये हैं जिनके स्वामियों के गोत्र और घरों का सर्वथा विनाश हो गया है, ऐसे.ये निधान जो कि पुरों में यानी शहरों में ग्राम, आकर, नगर, खेड़, कर्बट, द्रोणमुख, पत्तन, आश्रम, संबाध और सन्निवेशों आदि बस्तियों में तथा श्रङ्गाटक यानी सिंघाड़े के आकार त्रिकोण, त्रिक यानी जहां तीन मार्ग मिलते हैं, चतुष्कोण यानी जहां चार मार्ग मिलते हैं, चत्वर यानी कोट और गलियों के बीच का स्थान, चतुर्मुख यानी चार दरवाजों वाला मन्दिर आदि और महापथ यानी राजमार्ग, इत्यादि रास्तों में तथा नगर की मोरियों में, श्मशान, सूने घर, पर्वत पर बने हुए घर, पर्वत की गुफा, शान्तिगृह यानी जहां राजा लोगों के लिए होमादि किये जाते हैं, शैल यानी पर्वत को खोद कर बनाये हुए घर, उपस्थानगृह यानी ठहरने के स्थान अथवा पत्थर के बने हुए घर, भवन - चौशाल आदि और सामान्य घर, इनमें जो उपरोक्त निधान गड़े हुए हैं उनको देखकर आश्चर्य से अथवा लोभ से प्रथम समय में ही रुक जाता है। इन पांच कारणों से अवधिदर्शन उत्पन्न होता हुआ भी प्रथम समय में ही रुक जाता है। पांचं कारणों से केवलज्ञान, केवलदर्शन उत्पन्न होते हुए प्रथम समय में रुकते नहीं है यथा - १ अल्पभूत पृथ्वी को देखकर प्रथम समय में ही रुकते नहीं है । शेष सारा अधिकार पहले की तरह कह देना चाहिये यावत् भवनों और घरों में जो निधान गड़े हुए हैं उनको देखकर प्रथम समय में रुकते नहीं है। शेष सारा अधिकार पहले की तरह कह देना चाहिये । इन पांच कारणों से उत्पन्न होते हुए केवलज्ञान, केवलदर्शन रुकते नहीं हैं।
विवेचन - पांच पडिमाएं (अभिग्रह विशेष) कही गयी हैं - १. भद्रा २. सुभद्रा ३. महाभद्रा ४. सर्वतोभद्रा और ५. भद्रोत्तर प्रतिमा। भद्रा, महाभद्रा और सर्वतोभद्रा अनुक्रम से दो, चार और दश दिनों में पूर्ण होती है। सुभद्रा प्रतिमा के लिये टीकाकार लिखते हैं कि - 'सुभद्रा त्वदृष्टत्वान्न लिखिता'सुभद्रा का वर्णन शास्त्र में कहीं देखने में नहीं आया, इस कारण नहीं लिखा गया है। सर्वतोभद्रा प्रतिमा प्रकारान्तर से दो प्रकार की कही है - १. छोटी (क्षुल्लिका) सर्वतोभद्रा और २. मोटी (महती) सर्वतोभद्रा प्रतिमा। छोटी सर्वतोभद्रा प्रतिमा में प्रथम दिन एक उपवास फिर पारणा, तत्पश्चात् दो उपवास फिर पारणा फिर तीन उपवास फिर पारणा, फिर चार उपवास फिर पारणा, फिर पांच उपवास कर पारणा। फिर दूसरी लाईन में तीन उपवास और पारणा, इस प्रकार स्थापना क्रम से ७५ उपवास और
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org