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स्थान ५ उद्देशक १ 000000000000000000000000000000000000000000000000000
पंचहि ठाणेहिं केवलवरणाणदंसणे समुप्पजिउकामे तप्पढमयाए णो खंभाएग्जा, तंजहा - अप्पभूयं वा पुढविं पासित्ता तप्पढमयाएं णो खंभाएज्जा, सेसं तहेव जाव श्रवणगिहेसु सण्णिखित्ताई चिटुंति ताई वा पासित्ता तप्पढमयाए णो खंभाएज्जा, सेसं तहेव, इच्चेएहिं पंचहिं ठाणेहिं जाव णो खंभाएज्जा॥३॥
. कठिन शब्दार्थ - पडिमाओ - पडिमाएं, सव्वओभद्दा - सर्वतोभद्रा, भहुत्तर पडिमा - भद्रोतरपडिमा, इंदेथावरकाए- इन्द्र स्थावरकाय-पृथ्वी, बंभे थावरकाए - ब्रह्म स्थावरकाय-पानी, सिप्पे थावरकाए - शिल्प स्थावरकाय-अग्नि, सुमई थावरकाए - सुमति स्थावरकाय-वायु, पयावच्चे थावरकाए - प्रजापति स्थावरकाय-वनस्पति, थावरकायाहिवई - स्थावर काया के अधिपति, समुप्पज्जिउकामे- उत्पन्न होता हुआ, तप्पढमयाए - प्रथम समय में ही, खंभाएज्जा - क्षुभित हो जाता है-रुक जाता है, अप्पभूयं-थोड़े जीवों से व्याप्त, कुंथुरासिभूयं - कुन्थुओं की राशि से भरी हुई, महड्डियं - महर्द्धिक, महेसक्खं - महान् सुखों वाले को, पोराणाई - प्राचीन, महाणिहाणाई - महान् निधान, पहीणसामियाइं - जिनके स्वामी नष्ट हो गये, पहीणसेउयाई - पहचानने के चिह्न नष्ट हो गये, पहीणगुत्तागाराई- गोत्र और घर नष्ट हो गये, उच्छिण्ण - सर्वथा नष्ट हो गये, गामागरणगरखेड कब्बड दोणमुह पट्टणासम संबाह सण्णिवेसेसु - ग्राम, आकर, नगर, खेड, कर्बट, द्रोणमुख, पत्तन, आश्रम, संबाध और सन्निवेशों में, सिंघाडग तिय चउक्क चच्चरचउम्मुह महापह पहेसु - श्रृंगाटक, त्रिकोण, चतुष्कोण, चत्वर, चतुर्मुख और महापथ आदि रास्तों में, णगरणिद्धमणेसु- नगर की मोरियों में, सुसाणसुण्णागार गिरिकंदरसंतिसेलोवट्ठाण भवणगिहेसु - श्मशान, शून्यघर, पर्वत पर बने घर, पर्वत की गुफा, शांतिगृह, शैल, उपस्थानगृह, भवन और सामान्य घर आदि में।
. भावार्थ - पांच पडिमाएं कही गई हैं यथा - भंद्रा, सुभद्रा, महाभद्रा, सर्वतोभद्रा और भद्रोत्तर पडिमा। पांच स्थावर काया कही गई हैं यथा - इन्द्र स्थावरकाय-पृथ्वी, ब्रह्म स्थावरकाय-पानी, शिल्प स्थावरकाय-अग्नि, सुमति स्थावरकाय-वायु और प्रजापति स्थावरकाय-वनस्पति। पांच स्थावरकाय के अधिपति कहे गये हैं यथा - पृथ्वीकाय का अधिपति इन्द्र है। अप्काय का अधिपति ब्रह्म है। तेउकाय का अधिपति शिल्प देव है। वायुकाय का अधिपति सुमति देव है। वनस्पतिकाय का अधिपति प्रजापति देव है। ___पांच कारणों से अवधिदर्शन उत्पन्न होता हुआ भी प्रथम समय में ही रुक जाता है यथा - १ थोड़े से जीवों से व्याप्त पृथ्वी को देखकर प्रथम समय में ही रुक जाता है । अथवा पहले बहुत पृथ्वी जानता था परन्तु पीछे से थोड़ी पृथ्वी देख कर रुक जाता है । २ अत्यन्त सूक्ष्म कुन्थुओं की राशि से भरी हुई
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