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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 स्पर्श इन पांच बातों को ज्ञ परिज्ञा से जान कर प्रत्याख्यान परिज्ञा से त्यागना जीवों के लिए सुगति में जाने के कारण होते हैं । प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन और परिग्रह इन पांच बातों का सेवन करने से जीव दुर्गति में जाते हैं। प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन और परिग्रहं इन पांच का त्याग करने से जीव सुगति में जाते हैं। - विवेचन - काला, नीला, लाल, पीला, सफेद ये ही पांच मूल वर्ण हैं। इनके सिवाय लोक प्रसिद्ध अन्य वर्ण इन्हीं के संयोग से पैदा होते हैं।
तीखा, कडुवा, कषैला, खट्टा, मीठा इनके अतिरिक्त दूसरे रस इन्हीं के संयोग से पैदा होते हैं। इसलिये यहां पांच मूल रस ही गिनाये गये हैं। ___ शब्द, रूप, गंध, रस, स्पर्श ये पांचों क्रमशः पांच इन्द्रियों के विषय हैं। ये पांच काम अर्थात् अभिलाषा उत्पन्न करने वाले गुण हैं। इसलिए कामगुण कहे जाते हैं।
प्रतिमा, स्थावरकाय, अवधिदर्शन केवलज्ञान दर्शन ... पंच पडिमाओ पण्णत्ताओ तंजहा - भद्दा, सुभद्दा, महाभहा, सव्वओभद्दा, . भहुत्तरपडिमा । पंच थावर काया पण्णत्ता तंजहा - इंदे थावरकाए, बंभे थावरकाए, सिप्पे थावरकाए, सुमई थावरकाए, पयावच्चे थावरकाए । पंच थावरकायाहिवई पण्णत्ता तंजहा - इंदे थावरकायाहिवई, बंभे थावरकायाहिवई, सिप्पे थावरकायाहिवई सुमई थावरकायाहिवई, पयावच्चे थावरकायाहिवई। . __पंचहिं ठाणेहिं ओहेिदंसणे समुप्पज्जिउकामे वि तप्पढमयाए खंभाएग्जा, तंजहाअप्पभूयं वा पुढविं पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएज्जा, कुंथुरासिभूयं वा पुढविं पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएग्जा, महतिमहालयं वा महोरगसरीरं पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएज्जा, देवं वा महड्डियं जाव महेसक्खं पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएग्जा, पुरेसु वा पोराणाई, महतिमहालयाई, महाणिहाणाई, पहीणसामियाई, पहीणसेउयाई, पहीणगुत्तागाराई, उच्छिण्णसामियाई, उच्छिण्ण सेउयाई, उच्छिण्णगुत्तारागाई, जाई, इमाई, गामागरणगर खेडकब्बड दोणमुह पट्टणासमसंबाह सण्णिवेसेसु सिंघाडग तिय चउक्क चच्चरचउम्मुह महापह पहेसुणगरणिद्धमणेसु सुसाणसुण्णागार गिरिकंदरसंतिसेलोवट्ठाण भवण गिहेस, सण्णिखित्ताई चिटुंति ताई वा पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएज्जा, इच्चेहिं पंचहिं ठाणेहिं ओहिदसणे समुष्पग्जिउकामे तप्पढमयाए खंभाएज्जा।
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