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स्थान ५ उद्देशक १
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तंजहा - सद्देहिं जाव फासेहिं । एवं रज्जंति, मुच्छंति, गिज्जंति, अज्झोववज्जति । पंचाहिँ ठाणेहिं जीवा विणिग्घायमावज्जंति तंजहा - सद्देहिं जाव फासेहिं ।
पंच ठाणा अपरिण्णाया जीवाणं अहियाए असुभाए अखमाए अणिस्सेसाए अणाणुगामियत्ताए भवंति तंजहा सद्दा जाव फासा । पंच ठाणा सुपरिण्णाया जीवाणं हियाए, सुभाए, खमाए, णिस्सेसाए, आणुगामियत्ताए भवंति तंजहा - सद्दा जाव फासा । पंच ठाणा अपरिण्णाया जीवाणं दुग्गड़ गमणाए भवंति तंजहा - सद्दा जाव फासा । पंच ठाणा परिण्णाया जीवाणं सुग्गड़ गमणाए भवंति तंजहा - सद्दा जाव फासा । पंचहिं ठाणेहिं जीवा दोग्गइं गच्छंति तंजहा - पाणाइवाएणं जाव परिग्गणं । पंचर्हि ठाणेहिं जीवा सुगई गच्छंति तंजहा पाणाइवाय वेरमणेणं जाव परिग्गह वेरमणेणं ॥ २ ॥
कठिन शब्दार्थ - वण्णा - वर्ण, अंबिला - आम्ल (खट्टा), सज्जंति - आसक्त होते हैं, रज्जंतिअनुरक्त होते हैं, मुच्छंति - मूर्च्छित होते हैं, गिज्झति गृद्ध होते हैं, अज्झोक्वज्जति एकचित्त हो जाते हैं, विणिग्घायं विनाश को, आवज्जंति प्राप्त होते हैं, अणिस्सेसाए - अकल्याण, अणाणुगामियत्ताए - अननुगामिता के कारण, आणुगामियत्ताए - अनुगामिता के कारण, दुग्गड्गमणाएदुर्गति में ले जाने के कारण, सुग्गइगमणाए
सुगति में ले जाने
कारण ।
भावार्थ- पांच वर्ण कहे गये हैं यथा कृष्ण यानी काला, नीला, लोहित यानी लाल, हारिद्र यानी पीला, शुक्ल यानी सफेद । पांच रस कहे गये हैं यथा तिक्त, कटुक, कषैला, आम्ल यानी खट्टा और मधुर । पांच कामगुण कहे गये हैं यथा - शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श । जीव पांच स्थानों में आसक्त होते हैं यथा - शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श । इन्हीं पांच स्थानों में जीव अनुरक्त होते हैं, मूर्च्छित होते हैं, गृद्ध होते हैं और उनमें एक चित्त हो जाते हैं । शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श इन पांच स्थानों में आसक्त जीव विनाश को प्राप्त होते हैं अथवा संसार परिभ्रमण करते हैं ।
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शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श इन पांच बातों को ज्ञ परिज्ञा से न जानने से और प्रत्याख्यान परिज्ञा से त्याग न करने से जीवों के लिए अहित, अशुभ, अक्षमा, अकल्याण और अननुगामिता के कारण होते हैं । शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श इन पांच बातों को ज्ञपरिज्ञा से भली प्रकार जान कर प्रत्याख्यान परिज्ञा से त्याग करने से जीवों के लिए हित, शुभ, क्षमा, कल्याण और अनुगामिता के कारण होते हैं । शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श इन पांच बातों को ज्ञपरिज्ञा से न जानना और प्रत्याख्यान परिज्ञा से त्याग न करना जीवों के लिए दुर्गति में ले जाने के कारण होते हैं । शब्द, रूप, गन्ध, रस और
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