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राजि उत्तर की बाह्य कृष्ण राजि को और उत्तर की आभ्यन्तर कृष्ण राजि पूर्व की बाह्य कृष्ण राजि को स्पर्श किये हुए हैं।
इन आठ कृष्ण राजियों में पूर्व पश्चिम की बाह्य दो कृष्ण राजियां षट्कोणाकार हैं एवं उत्तर दक्षिण की बाह्य दो कृष्ण राजियाँ त्रिकोणाकार हैं । अन्दर की चारों कृष्ण राजियाँ चतुष्कोण हैं।
कृष्ण राजि के आठ नाम हैं - १. कृष्ण राजि २. मेघ राजि ३. मघा ४. माघवती ५. वातपरिघा ६. वातपरिक्षोभा ७. देवपरिघा ८. देवपरिक्षोभा ।
काले वर्ण की पृथ्वी और पुद्गलों के परिणाम रूप होने से इसका नाम कृष्ण राजि है। काले मेघ की रेखा के सदृश होने से इसे मेघ राजि कहते हैं। छठी और सातवीं नारकी के सदृश अंधकारमय होने से कृष्ण राजि को मघा और माघवती नाम से कहते हैं। आँधी के सदृश सघन अंधकार वाली और दुर्लय होने से कृष्ण राजि वातपरिघा कहलाती है। आँधी के सदृश अंधकार वाली और क्षोभ का कारण होने से कृष्ण राजि को वातपरिक्षोभा कहते हैं । देवता के लिये दुर्लंघ्य होने से कृष्ण राजि का नाम देवपरिघा है और देवों को क्षुब्ध करने वाली होने से यह देवपरिक्षोभा कहलाती है।
यह कृष्ण राजि सचित्त अचित्त पृथ्वी के परिणाम रूप है और इसीलिये जीव और पुद्गल दोनों के विकार रूप है।
ये कृष्ण राजियाँ असंख्यात हजार योजन लम्बी और संख्यात हजार योजन चौड़ी हैं। इनका परिक्षेप (घेरा) असंख्यात हजार योजन है।
लोकान्तिक देव- आठ कृष्ण राजियों के अवकाशान्तरों में आठ लोकान्तिक विमान हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं
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स्थान ८
१. अर्ची २. अर्चिमाली ३. वैरोचन ४. प्रभंकर ५. चन्द्राभ ६. सूर्याभ ७. शुक्राभ ८. सुप्रतिष्ठाभ । अर्ची विमान उत्तर और पूर्व की कृष्ण राजियों के बीच में है। अर्चिमाली पूर्व में है । इसी प्रकार सभी को जानना चाहिए। रिष्टविमान बिल्कुल मध्य में है। इनमें आठ लोकान्तिक देव रहते हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं १. सारस्वत २. आदित्य ३. वह्नि ४. वरुण ५. गर्दतोय ६. तुषित ७. अव्याबाध ८. आग्नेय । ये देव क्रमशः अर्ची आदि विमानों में रहते हैं।
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सारस्वत और आदित्य के सात देव तथा उनके सात सौ परिवार है । वह्नि और वरुण के चौदह देव तथा चौदह हजार परिवार है। गर्दतोय और तुषित के सांत देव तथा सात हजार परिवार हैं। बाकी देवों के नव देव और नव सौ परिवार है।
लोकान्तिक विमान वायु पर ठहरे हुए हैं। उन विमानों में जीव असंख्यात और अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं किन्तु देव के रूप में अनन्त बार उत्पन्न नहीं हुए।
लोकान्तिकं देवों की आठ सागरोपम की स्थिति है। लोकान्तिक विमानों से लोक का अन्त असंख्यात हजार योजन दूरी पर है।
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