________________
२३२
श्री स्थानांग सूत्र
रुचक प्रदेश - रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर तिर्यक् लोक के मध्य भाग में एक राजु परिमाण आयाम विष्कम्भ (लम्बाई चौड़ाई) वाले आकाश प्रदेशों के दो प्रतर हैं। वे प्रतर सब प्रतरों से छोटे हैं। मेरु पर्वत के मध्य प्रदेश में इनका मध्यभाग है। इन दोनों प्रतरों के बीचोबीच गोस्तनाकार चार चार आकाश प्रदेश हैं। ये आठों आकाश प्रदेश जैन परिभाषा में रुचक प्रदेश कहे जाते हैं। ये ही रुचक प्रदेश दिशा और विदिशाओं की मर्यादा के कारणभूत हैं। ___ उक्त आठों रुचक प्रदेश आकाशास्तिकाय के हैं। आकाशास्तिकाय के मध्यभागवर्ती होने से इन्हें आकाशास्तिकाय मध्य प्रदेश भी कहते हैं। आकाशास्तिकाय की तरह ही धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय के मध्य भाग में भी आठ आठ रुचक प्रदेश रहे हुए हैं। इन्हें क्रमशः धर्मास्तिकाय मध्यप्रदेश और अधर्मास्तिकाय मध्यप्रदेश कहते हैं। कुछ आचार्यों की मान्यता है कि जीव के ये आठ रुचक प्रदेश : कर्मबन्ध से रहित है किन्तु यह मान्यता आगमानुकूल नहीं है। क्योंकि उत्तराध्ययन सूत्र के ३४ वें अध्ययन की १८ वीं गाथा तथा भगवती सूत्र शतक ८ उद्देशक ८ के मूल पाठ में कहा है - 'सव्व सव्वेण बद्धगं' अर्थात् आत्मा के सभी प्रदेश सभी कर्मों से अर्थात् आठों कर्मों से बंधे हुए हैं। इस पाठ से स्पष्ट होता कि जीव के ये आठ रुचक प्रदेश भी कर्मों से बद्ध होते हैं। अतः रुचक प्रदेश कर्मबन्ध रहित नहीं है।
महापन द्वारा मुंडित राजा, आठ अग्रमहिषियाँ , अरहा णं महापउमे अट्ठ रायाणो मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वावेस्सइ .. तंजहा - पउमं, पउमगुम्मं, णलिणं, णलिणगुम्मं, पउमद्धयं, धणुद्धयं, कणगरहं, • भरहं । कण्हस्स णं वासुदेवस्स अट्ठ अग्गमहिसीओ अरहओ णं अरिट्ठणेमिस्स अंतिए . मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया सिद्धाओ जाव सव्वदुक्खप्पहीणाओ । तंजहा
पउमावई गोरी गंधारी, लक्खणा सुसीमा जंबवई ।
सच्चभामा रुप्पिणी, कण्ह अग्गमहिसीओ ॥ १ ॥ वीरियपुवस्स णं अट्ठवत्थू, अट्ठ चुलियावत्यू पण्णत्ता॥१२॥ __ भावार्थ - आगामी उत्सर्पिणी काल में होने वाले प्रथम तीर्थङ्कर श्री महापद्म स्वामी आठ राजाओं को मुण्डित करके दीक्षा देंगे । यथा - पद्म, पद्मगुल्म, नलिन, नलिनगुल्म, पद्मध्वज, धनुर्ध्वज, कनकरथ, भरत । कृष्ण वासुदेव की आठ अग्रमहिषिया बाईसवें तीर्थकर भगवान् अरिष्टनेमि के पास मुण्डित होकर दीक्षित हुई थी और वे सिद्ध हुई यावत् उन्होंने सब दुःखों का अन्त किया। उनके नाम इस प्रकार हैं - पद्मावती, गौरी, गन्धारी, लक्ष्मणा, सुसीमा, जाम्बवती, सत्यभामा और रुक्मिणी ये कृष्ण की आठ अग्रमहिषियाँ थी ॥१॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org