SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३० श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 उत्तर दिशा की आभ्यन्तर कृष्ण राजि पूर्व दिशा की बाहरी कृष्ण राजि को स्पर्श किये हुए है। इन आठ कृष्ण राजियों में से पूर्व और पश्चिम दिशा की बाहरी दो कृष्ण राजियां षट् कोणाकार हैं और उत्तर तथा दक्षिण दिशा की बाहरी दो कृष्ण राजियां त्र्यस्र यानी त्रिकोणाकार हैं । आभ्यन्तर चारों कृष्ण राजियाँ चतुरस्र यानी चतुष्कोण हैं। इन आठ कृष्ण राजियों के आठ नाम कहे गये हैं। यथा - कृष्ण राजि काले वर्ण की पृथ्वी और पुद्गलों का परिणाम रूप पंक्ति । मेघराजि - काले मेघ की रेखा के समान । मघा - छठी नारकी के समान अन्धकार वाली । माधवर्ती-सातवीं नारकी के समान अन्धकार वाली। वातपरिघा - आन्धी के समान सघन अन्धकार वाली और दुलंघनीय । वातपरिक्षोभा - आन्धी के समान अन्धकार वाली और क्षोभ पैदा करने वाली। देवपरिघा - देवों के लिए दुलंघनीय, देवपरिक्षोभा-देवों को क्षोभ पैदा करने वाली। इन आठ कृष्ण राजियों के आठ अवकाशान्तरों में आठ लोकान्तिक विमान कहे गये हैं। यथा-अर्चि, अर्चिमाली, वैरोचन, प्रभङ्कर, चन्द्राभ, सूर्याभ, सुप्रतिष्ठाभ और * आग्रेयाम । इन आठ लोकान्तिक विमानों में आठ प्रकार के लोकान्तिक देव रहते हैं । यथा - सारस्वत, आदित्य, वह्नि, वरुण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध और आग्नेय । ये देव क्रमशः अर्ची आदि विमानों में रहते हैं । इन आठ लोकान्तिक देवों की अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थिति आठ सागरोपम की कही गई हैं। धर्मास्तिकाय के आठ मध्य प्रदेश कहे गये हैं । अधर्मास्तिकाय के आठ मध्य प्रदेश कहे गये हैं। इसी तरह आकाशास्तिकाय के आठ मध्य प्रदेश और जीव के आठ मध्य प्रदेश कहे गये हैं । विवेचन - कृष्ण राजियों - कृष्ण वर्ण की सचित्त अचित्त पृथ्वी की भित्ति के आकार व्यवस्थित पंक्तियाँ कृष्ण राजियां हैं एवं उनसे युक्त क्षेत्र विशेष भी कृष्ण राजि नाम से कहा जाता है। सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के ऊपर और ब्रह्मलोक कल्प के नीचे रिष्ट विमान नाम का पाथड़ा है। यहाँ पर आखाटक (आसन विशेष) अर्थात् अखाडा के आकार की समचतुरस्र संस्थान वाली आठ कृष्ण राजियां हैं। पूर्वादि चारों दिशाओं में दो दो कृष्ण राजियाँ हैं। पूर्व में दक्षिण और उत्तर दिशा में तिर्थी फैली हुई दो कृष्ण राजियाँ हैं। दक्षिण में पूर्व और पश्चिम दिशा में तिर्थी फैली हुई दो कृष्ण राजिया है। इसी प्रकार पश्चिम दिशा में दक्षिण और उत्तर में फैली हुई दो कृष्ण राजिया है और उत्तर दिशा में पूर्व पश्चिम में फैली हुई दो कृष्ण राजियां हैं। पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशा की आभ्यन्तर कृष्ण राजियाँ क्रमशः दक्षिण, उत्तर, पूर्व और पश्चिम की बाहर वाली कृष्ण राजियां को छूती हुई हैं। जैसे पूर्व की आभ्यन्तर कृष्ण राजि दक्षिण की बाह्य कृष्ण राजि को स्पर्श किये हुए हैं। इसी प्रकार दक्षिण की आभ्यन्तर कृष्ण राजि पश्चिम की बाह्य कृष्ण राजि को, पश्चिम की आभ्यन्तर कृष्ण * भगवती सूत्र में आठ लोकान्तिक विमानों के नाम इस प्रकार हैं - अर्ची, अर्चिमाली, वैरोचन, प्रभङ्कर, चन्द्राभ, सूर्याभ, शुक्राभ और सुप्रतिष्ठाभ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy