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स्थान८
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0000000000000000000000000000000000000000000०००००००० अब्भंतरा कण्हराई पुरच्छिमं बाहिरं कण्हराइं पुट्ठा । पुरच्छिम पच्चच्छिमिल्लाओ बाहिराओ दो कण्हराईओ छलसाओ । उत्तर दाहिणाओ बाहिराओ दो कण्हराईओ तंसाओ । सव्वाओ वि णं अब्भंतर कण्हराईओ चउरंसाओ । एयासिणं अट्ठण्हं कण्हराईणं अट्ठ णामधिज्जा पण्णत्ता तंजहा - कण्हराई इ वा, मेहराई इ वा, मघा इ वा, माघवई इ वा, वायफलिहे इवा, वायपलिक्खोभे इ वा, देवफलिहे इ वा, देवपलिक्खोभेइ वा। एयासिणं अट्ठण्हं कण्हराईणं अट्ठसु उवासंतरेसु अट्ठ लोगंतिय विमाणा पण्णत्ता तंजहा - अच्ची, अच्चिमाली, वइरोयणे, पभंकरे, चंदाभे, सूराभे, सुपइट्ठाभे, अग्गिच्चाभे एएसुणं अट्ठसु लोगतियविमाणेसु अट्ठविहा लोगतिया देवा पण्णत्ता तंजहा -
सारस्सयमाइच्चा वण्ही वरुणा य गहतोया य।
तुसिया अव्वाबाहा, अग्गिच्चा चेव बोद्धव्वा ॥ १ ॥ एएसिणं अट्ठण्हं लोगंतिय देवाणं अजहण्णमणुक्कोसे णं अट्ठ सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । अट्ठ धम्मत्थिकाय मज्झपएसा पण्णत्ता, अट्ठ अधम्मत्थिकाय मज्झपएसा पण्णत्ता एवं चेव अट्ठ आगासत्थिकाय मांझपएसा पण्णत्ता । एवं चेव अट्ठ जीव मज्झपएसा पण्णत्ता॥९२॥
कठिन शब्दार्थ - कण्हराईओ - कृष्णराजियां, पुट्ठा - स्पर्श किये हुए है, छलंसाओ - षट् कोणाकार, तंसाओ - त्र्यस्र-त्रिकोणाकार, चउरंसाओ - चतुरस्र-चतुष्कोण, मेहराई - मेघराजि, वायफलिहं - वातपरिघा, वायपलिक्खोभे - वात परिक्षोभा, लोगंतिय विमाणा - लोकान्तिक विमान।
"भावार्थ - आठ प्रकार का आहार कहा गया है । यथा - मनोज अशन पान खादिम स्वाति अमनोज्ञ अशन, पान, खादिम, स्वादिम । सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के ऊपर यानी तीसरे चौथे देवलोक के ऊपर और ब्रह्मलोक नामक पांचवें देवलोक के नीचे रिष्ट विमान नाम का पाथड़ा है । यहाँ पर आखाटक आसन के आकार की समचतुरस्त्र संस्थान वाली आठ कृष्ण राजियाँ यानी काले वर्ण की सचित्त अचित्त पृथ्वी की भींत के आकार व्यवस्थित पंक्तियाँ कही गई हैं । यथा - पूर्व दिशा में दो कृष्ण राजियां, दक्षिण दिशा में दो कृष्ण राजिया, पश्चिम दिशा में दो कृष्ण राजियाँ और उत्तर दिशा में दो कृष्ण राजिया हैं । इस प्रकार चारों दिशाओं में आठ कृष्ण राजियाँ हैं । पूर्व दिशा की आभ्यन्तर कृष्ण राजि दक्षिण दिशा की बाहरी कृष्ण राजि को स्पर्श किये हुए है । दक्षिण दिशा की आभ्यन्तर कृष्ण राजि पश्चिम दिशा की बाहरी कृष्ण राजि को स्पर्श किये हुए है।
पश्चिम दिशा की आभ्यन्तर कृष्ण राजि उत्तर दिशा की बाह्य कृष्ण राजि को स्पर्श किये हुए है ।
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