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श्री स्थानांग सूत्र
प्रकार का उपमा रूप काल कहा गया है। यथा - पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी, पुद्गल परावर्तन, अतीत काल, अनागत काल और सर्वकाल। बाईसवें तीर्थङ्कर भगवान् अरिष्टनेमि के मोक्ष पधारने के बाद उनके आठ पाट तक यानी उनके पाट पर बैठने वाले शिष्य प्रशिष्य आठ पुरुष मोक्ष गये
और भगवान् अरिष्टनेमि को केवलज्ञान हुए पीछे दो वर्ष बाद मोक्ष जाना शुरू हुआ था। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने आठ राजाओं को मुण्डित करके दीक्षा दी थी। यथा - वीराङ्गक, वीरयश, संजय, एणेयक गोत्र वाला राजा प्रदेशी का निजी कोई राजर्षि, आमल कल्पा नगरी का स्वामी श्वेत, हस्तिनापुर का राजा शिव, सिन्धु सौवीर देशों का स्वामी उदायन राजा और * काशीवर्द्धन शंख राजा ॥१॥ .
विवेचन - दर्शन - वस्तु के सामान्य प्रतिभास को दर्शन कहते हैं। ये आठ हैं - १. सम्यग्दर्शन- यथार्थ प्रतिभास को सम्यग-दर्शन कहते हैं। २.मिथ्यादर्शन - मिथ्या अर्थात् विपरीत प्रतिभास को मिथ्या दर्शन कहते हैं। ३. सम्यग् मिथ्यादर्शन - कुछ सत्य और कुछ मिथ्या प्रतिभास को सम्यग् मिथ्या दर्शन कहते हैं।
४. चक्षु दर्शन ५. अचक्षु दर्शन ६. अवधि दर्शन ७. केवल दर्शन । इन चारों का स्वरूप चौथे स्थानक में दे दिया गया है।
८. स्वप्नदर्शन - स्वप्न में कल्पित वस्तुओं को देखना।
श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास दीक्षित आठ राजा - आठ राजाओं ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास दीक्षा ली थी। उनके नाम इस प्रकार हैं।
१. वीरांगक २. वीरयशा ३. संजय ४. एणेयक ५. श्वेत ६. शिव ७. उदावन (वीतिभय नगर का राजा, जिसने चण्डप्रद्योत को हराया था तथा भाणेज को राज्य देकर दीक्षा ली थी) ८. शंख (अलख)।
- माहार, कृष्ण सजियां मध्य प्रदेश अट्ठविहे आहारे पण्णते तंजहा - मणुण्णे असणे, पाणे, खाहमे, साइमे, अमणुणे असणे, पाणे, खाइमे, साइमे । उप्पिं सणंकुमार माहिंदाणं कप्पाणं हेडिं बंभलोए कप्पे रिविमाणे पत्थडे एत्थ णं अक्खाडग समचउरंस संठाणसंठियाओ अट्ठ कण्हराईओ पण्णत्ताओ तंजहा - पुरच्छिमेणं दो कण्हराईओ दाहिजेणं दो कण्हराईओ, पच्चच्छिमेणं दो कण्हराईओ, उत्तरेणं दो कण्हराईओ । पुरच्छिमा अब्भतरा कण्हराई दाहिणं बाहिरं कण्हराई पुट्ठा । दाहिणा अब्भतरा कण्हराई पच्चच्छिमगं बाहिरं कण्हराई पुट्ठा । पच्चच्छिमा अब्भंतरा कण्हराई उत्तरं बाहिरं कण्हराई पुट्ठा । उत्तरा . * यह किस देश का राजा था सो ज्ञात नहीं होता है । अन्तगडदशाङ्ग सूत्र में वर्णन आता है कि वाणारसी नगरी में अलक नामक राजा को दीक्षा दी थी । शायद इसी अलक राजा का दूसरा नाम काशीवर्द्धन शंख हो ।
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