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स्थान ८
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इन आठ प्रकार के सूक्ष्म का अर्थ भावार्थ से स्पष्ट है।
गण अर्थात् एक ही आचार वाले साधुओं का समुदाय, गण धारण करने वाले को गणधर कहते हैं। प्रस्तुत सूत्र में पुरुषों में आदेय नाम वाले भगवान् पार्श्वनाथ के आठ गण और आठ गणधर कहे हैं किंतु हरिभद्रीयावश्यक में भगवान् पार्श्वनाथ स्वामी के दस गण और दस गणधर कहे गये हैं। इसका कारण यह है कि दो गणधर अल्प आयु वाले थे । इसलिए उन दोनों की यहाँ विवक्षा नहीं की गई है । किन्तु यह मान्यता आगम सहित नहीं है। इसीलिए यहाँ आठ गण और आठ ही गणधर बतलाये गये हैं। महान् अर्थ और अनर्थ के साधक होने से आठ महाग्रह कहे हैं - चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बुध, बृहस्पति, मंगल, शनिश्चर और केतु। ___आदित्ययश आदि आठ महापुरुषों का वर्णन ऊपर आया है। कितनेक आचार्यों की मान्यता है कि आदित्ययश, महायश आदि आठों भरत चक्रवर्ती के लडके थे और वे आठों भाई थे। उनकी यह मान्यता आगमानुकूल नहीं है। ये आठों ही वंश परम्परा है अर्थात् आदित्ययश के पुत्र महायश थे और महायश के पुत्र अतिबल और अतिबल के पुत्र महाबल थे, इस प्रकार ये परस्पर पिता-पुत्र थे और आठों ही उसी भव में मोक्ष पंधारे हैं।
दर्शन, उपमाकाल .. अट्ठविहे दंसणे पण्णत्ते तंजहा - सम्मदंसणे, मिच्छदसणे, सम्मामिच्छदसणे, चक्खुदंसणे, अचक्खुदंसणे, ओहिदंसणे, केवलदसणे, सुविणदंसणे । अट्ठविहे अद्धोवमिए पण्णत्ते तंजहा - पलिओवमे, सागरोवमे, उस्सप्पिणी, ओसप्पिणी, पोग्गल परियट्टे, तीयद्धा, अणागयद्धा, सव्वद्धा । अरहओ णं अरिट्ठणेमिस्स जाव अट्ठमाओ पुरिसजुगाओ जुगंतकरभूमी दुवासपरियाए अंतमकासी ।
- भ० महावीर स्वामी द्वारा दीक्षित आठ राजा समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठ रायाणो मुंडे भवित्ता अगारओ अणगारियं पव्वाइया तंजहा
वीरंगय वीरजसे, संजय एणिज्जए य रायरिसी ।
सेयसिवे उदायणे, तह संखे कासिवद्धणे ॥ १ ॥ ९१॥ कठिन शब्दार्थ - सुविणदंसण - स्वप्न दर्शन, अद्धोवमिए - उपमा रूप काल, पोग्गल परियट्टेपुद्गल परावर्तन, तीयद्धा - अतीतकाल, अणागयद्धा - अनागतकाल, सव्वद्धा.- सर्वकाल ।
भावार्थ - आठ प्रकार का दर्शन कहा गया है यथा - सम्यग्-दर्शन, मिथ्या दर्शन, सममिथ्या दर्शन, यानी मिश्र दर्शन, चक्षु दर्शन, अचक्षु दर्शन, अवधि दर्शन, केवल दर्शन और स्वप्न दर्शन । आठ
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