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. श्री स्थानांग सूत्र
२. दूसरी विभक्ति (कर्म) में "को" लगता है। जैसे कि विद्यार्थी पुस्तक को पढ़ता है, ३. तीसरी विभक्ति (करण) में 'ने, से, के द्वारा' के चिह्न लगते हैं। जैसे कि - लक्ष्मण ने बाण के द्वारा रावण को मारा था, ४. चौथी विभक्ति (सम्प्रदान) में 'के लिए' चिह्न लगता है। जैसे मुनि मोक्ष के लिए संयम धारण करता है, ५. पांचवी विभक्ति (अपादान) में "से" (दूर होने में) लगता है, जैसे कि - वृक्ष से पत्ता नीचे गिरता है, ६. छठी विभक्ति (सम्बन्ध) में "का, की, के", "रा, री, रे" चिह्न लगते हैं। जैसे कि राम का बाण, राम की पुस्तक, राम के मित्र। सातवीं विभक्ति (अधिकरण) में "में, पे, पर" ये चिह्न लगते हैं। यथा घर में, घर पर, घर पे। आठवीं विभक्ति (संबोधन) "हे, रे, अरे, अहो, भो" आदि चिह्न लगते हैं। जैसे हे राजन् इत्यादि। ____ छद्मस्थ पुरुष आठ पदार्थों को सर्वभाव से यानी सम्पूर्ण पर्यायों सहित नहीं जान सकता है
और नहीं देख सकता है यथा - धर्मास्तिकाय आदि छह बोल जो छठे ठाणे में बतलाये गये हैं और गन्ध तथा वायु । केवलज्ञान केवलदर्शन के धारक, रागद्वेष को जीतने वाले, अरिहन्त केवली धर्मास्तिकाय से लेकर गन्ध और वायु तक इन आठों ही वस्तुओं को सर्वभाव से यानी समस्त पर्यायों सहित जानते और देखते हैं । आयुर्वेद यानी चिकित्सा शास्त्र आठ प्रकार का कहा गया है . यथा - १. कुमारभृत्य - जिसमें बालकों के रोगों को तथा माता के दूध सम्बन्धी रोगों को दूर करने की विधि बताई गई हो । २. कायचिकित्सा - ज्वर, अतिसार कुष्ठ आदि रोगों को दूर करने की विधि बताने वाला ग्रन्थ । ३. शालाक्य - कान, मुंह नाक आदि के रोग, जिनमें सलाई की जरूरत पड़ती हो, उन रोगों को दूर करने की विधि बताने वाला शास्त्र । ४. शल्यहत्या - शरीर में से शल्य, कांटे आदि को बाहर निकालने का उपाय बताने वाला शास्त्र । ५. जङ्गोली - विष को नाश करने की
औषधियां बताने वाला शास्त्र । ६. भूतविदया - भूत, पिशाच आदि को दूर करने की विदया बताने वाला शास्त्र । ७. क्षारतन्त्र - वीर्य को पुष्ट करने की औषधियाँ बताने वाला शास्त्र । ८. रसायन - मोती, प्रवाल, पारा आदि की भस्म बनाने की विधि बताने वाला शास्त्र रसायन शास्त्र कहलाता है ।
विवेचन - जिस शास्त्र में पूरी आयु को स्वस्थ रूप से बिताने का तरीका बताया गया हो अर्थात् जिसमें शरीर को नीरोग और पुष्ट रखने का मार्ग बताया हो उसे आयुर्वेद कहते हैं। इसका दूसरा नाम चिकित्सा शास्त्र है। इसके आठ भेदों का अर्थ भावार्थ में स्पष्ट कर दिया गया है।
अग्रमहिषियाँ . सक्कस्सणं देविंदस्स देवरण्णो अट्ट अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ तंजहा - पउमा, सिवा, सई, अंज, अमला, अच्छरा, णवमिया, रोहिणी । ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अट्ठ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ तंजहा - कण्हा, कण्हराई, रामा, रामरक्खिया, वसू, वसुगुत्ता, वसुमित्ता, वसुंधरा । सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो
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