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स्थान८
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लोक स्थिति को समझाने के लिए मशक का दृष्टान्त दिया जाता है। जैसे मशक को हवा से फूला कर उसका मुंह बंद कर दिया जाय। इसके बाद मशक के मध्य भाग में गांठ लगाकर ऊपर का मुख खोल दिया जाय और उसकी हवा निकाल दी जाय। ऊपर के खाली भाग में पानी भरकर वापिस मुंह बंद कर दिया जाय और बीच की गांठ खोल दी जाय। अब मशक के नीचे के भाग में हवा और हवा पर पानी रहा हुआ है। अथवा जैसे हवा से फूली हुई मशक को कमर में बांध कर कोई पुरुष अथाह पानी में प्रवेश करे तो वह पानी की सतह पर ही रहता है। इसी प्रकार आकाश और वायु आदि भी आधाराधेय भाव से अवस्थित हैं।
गणि सम्पदा · अट्ठविहा गणि संपया पण्णत्ता तंजहा - आचार संपया, सुय संपया, सरीर संपया, वयण संपया, वायणा संपया, मइ संपया, पओगमइ संपया, संग्गहपरिणा णामं अट्ठमा । एगमेगे णं महाणिही अट्ठचक्कवाल पट्ठाणे अट्ठजोयणाई उर्जा उच्चत्तेणं पण्णत्ते।
समितियाँ .... अट्ठ समिईओ पण्णताओ तंजहा-- ईरिया समिई, भासा समिई, एसणां समिई,
आयाणभंडमत्तणिक्खेवणा समिई, उच्चारपासवणखेल जल्ल सिंघाणपरिट्ठावणिया समिई, मण समिई, वय समिई, काय समिई॥८७॥ ___ कठिन शब्दार्थ - गणि संपया - गणि संपदा, पओगमइसंपया - प्रयोग मति सम्पदा, संग्गहपरिण्णा - संग्रह परिज्ञा, महाणिही - महानिधि ।।
- भावार्थ - गणिसम्पदा - साधुओं के गण को धारण करने वाला गणी कहलाता है। आचार्य की आज्ञा से जो कुछ साधुओं को साथ लेकर अलग विचरता है और उन साधुओं के आचार विचार का ध्यान रखता हुआ जगह जगह धर्म का प्रचार करता है वही गणी कहा जाता है। गणी में जो गुण होने चाहिए उन्हें गणिसम्पदा कहते हैं। वे सम्पदाएं आठ हैं यथा-१. आचारसम्पदा - चारित्र की दृढता २. श्रुतसम्पदा - विशिष्ट श्रुतज्ञान का होना अर्थात् गणी को बहुत शास्त्रों का ज्ञान होना चाहिए ।३. शरीर सम्पदा - शरीर प्रभावशाली तथा सुसंगठित होना चाहिए। ४. वचन सम्पदा - मधुर, प्रभावशाली तथा आदेय वचन होना चाहिए।५. वाचना सम्पदा - शिष्यों को शास्त्र आदि पढाने की योग्यता होनी चाहिए। ६. मति सम्पदा - मतिज्ञान की उत्कृष्टता । ७. प्रयोगमति सम्पदा - शास्त्रार्थ या विवाद के लिए अवसर आदि की जानकारी होनी चाहिए। ८. संग्रह परिज्ञा सम्पदा - चातुर्मास आदि के लिए मकान, पाट पाटला वस्त्रादि का अपने आचार के अनुसार संग्रह करना। गणी की ये आठ सम्पदाएं हैं।
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