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आठवां स्थान
सातवें अध्ययन के वर्णन के बाद अब संख्या क्रम से आठवें स्थानक में जीव अजीव आदि तत्त्वों का आठ की संख्या की अपेक्षा वर्णन किया जाता है। आठवें स्थान में एक ही उद्देशक है। इसका प्रथम सूत्र इस प्रकार है -
एकाकी विहार योग्य अनगार गुण ___ अट्ठहिं ठाणेहिं संपण्णे अणगारे अरिहइ एगल्लविहारपडिमं उवसंपग्जित्ताणं विहरित्तए तंजहा - सड्डी पुरिसजाए, सच्चे पुरिसजाए, मेहावी पुरिसजाए, बहुस्सुए पुरिसजाए, सत्तिमं, अप्पाहिगरणे, धिइमं, वीरियसंपण्णे।
योनि संग्रह - अट्ठविहे जोणिसंग्गहे पण्णत्ते तंजहा - अंडया, पोयया, जराउया, रसइया, संसेइमा, सम्मुच्छिमा, उब्भिया, उववाइया। अंडया अट्ठगइया अट्ठागइया पण्णत्ता तंजहा - अंडए, अंडएसु उववज्जमाणे अंडएहिंतो वा पोयएहिंतो वा जाव उववाइएहिंतो वा उववज्जेज्जा । से चेव णं से अंडए अंडयत्तं विप्पजहमाणे अंडयत्ताए वा पोययत्ताए वा जाव उववाइयत्ताए वा गच्छेज्जा । एवं पोयया वि, जराउया वि, सेसाणं गइरागई णस्थि ।
आठ कर्म प्रकृतियाँ । जीवा णं अट्ठ कम्म-पयडीओ चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा तंजहा - णाणावरणिज्जं, दरिसणावरणिज्जं, वेयणिज्जं, मोहणिज्जं, आउयं, णाम, गोयं, अंतराइयं । णेरइया णं अट्ठ कम्म पयडीओ चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, एवं चेव, एवं णिरंतरं जाव वेमाणिया णं । जीवा णं अट्ट कम्म पयडीओ उवचिणिंसु वा उवचिणंति वा उवचिणिस्संति वा, एवं चेव, एवं चिण, उवचिण, बंध, उदीर, वेय, तह णिज्जरा चेव । एए छ चउवीसा दंडगा भाणियव्वा॥८४॥ ___ कठिन शब्दार्थ - अरिहइ - योग्य माना जाता है, एगल्लविहारपडिमं - एकल विहार प्रतिमा को, सड्डी - श्रद्धावान्, पुरिसजाए - पुरुषजात, सत्तिमं - शक्तिमान्, अप्पाहिंगरणे - अल्पाधिकरण, धिइमं - धृतिमान् (धैर्यवान्), रसइया - रसज, संसेइमा - संस्वेदज उब्भिया - उद्भिज्ज, उववाइया - औपपातिक ।
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