________________
स्थान ७
. २०५
और आनन्दन । बेइन्द्रिय जीवों की योनि से उत्पन्न हुई कुलकोडी सात लाख कही गई है । जीवों ने सात स्थान निर्वर्तित पुद्गलों को पापकर्म रूप से सञ्चित किये थे, सञ्चित करते हैं और सञ्चित करेंगे यथा - नरक निर्वर्तित यावत् देवनिर्वर्तित । इसी तरह चयन यावत् निर्जरा तक कह देना चाहिए । सात प्रदेशी स्कन्ध अनन्त कहे गये हैं । सात प्रदेशावगाढ पुद्गल अनन्त कहे गये हैं।
विवेचन - बेइन्द्रिय जीवों की योनि दो लाख और जाति कुल कोटियाँ सात लाख है। कोटि से आशय एक समान कुल है अर्थात् एक कुल के अनेक प्रकार हैं जैसे एक ही प्रकार के गोबर में अनेक जाति के कृमि उत्पन्न होते हैं उनको सामूहिक रूप से कुल कहते हैं। इस विषय में वृत्तिकार कहते हैं -
"द्वीन्द्रिय जातौ या योनयस्तत्प्रभवा याः कुलकोटयस्तासां लक्षणानि सप्त प्रज्ञप्तानीति, तत्र योनिर्यथा गोमयस्तत्र चैकस्यामपि कुलानि-विचित्राकाराः कृम्यादय इति।"
एक ही योनि में अनेक कुल होते हैं अत: बेइन्द्रिय जीवों की योनियों में ७ लाख कुलकोटियाँ बताई गई हैं।
॥सातवां स्थान समाप्त ॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org