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स्थान ८
२०७ 000000000000000000000000000000000000000000000000000
भावार्थ - आठ गुणों से युक्त अनगार - साधु एकलविहार प्रतिमा को अङ्गीकार करके अकेला विचर सकता है वे गुण ये हैं - १. श्रद्धावान् पुरुष जात - जिनमार्ग में प्रतिपादित तत्त्व तथा आचार में दृढ़ श्रद्धा वाला हो । कोई देव तथा इन्द्र भी उसे सम्यक्त्व तथा चारित्र से विचलित न कर सके, ऐसा पुरुषार्थी, उदयमशील तथा हिम्मती होना चाहिए । २. सत्य पुरुषजात - सत्यवादी तथा दूसरों के लिए हित वचन बोलने वाला । ३. मेधावी पुरुष जात - शास्त्रों को ग्रहण करने की शक्ति वाला एवं मर्यादा में रहने वाला । ४. बहुश्रुत पुरुषजात - बहुत शास्त्रों को जानने वाला । सूत्र, अर्थ और तदुभय रूप आगम उत्कृष्ट कुछ कम दस पूर्व तथा जघन्य नववें पूर्व की तीसरी आचार वस्तु को जानने वाला होना चाहिए । ५. शक्तिमान तप, सत्त्व, सूत्र, एकत्व और बल सम्पन्न होना चाहिए । ६. अल्पाधिकरण - थोड़े वस्त्र पात्रादि वाला तथा कलहरहित हो । ७. धृतिमान् - धैर्यवान् अर्थात् अनुकूल प्रतिकूल परीषह उपसर्गों को सहन करने वाला होना चाहिए । ८. वीर्य सम्पन्न - परम उत्साह वाला होना चाहिए । उपरोक्त आठ गुणों वाला साधु एकल विहार पडिमा अङ्गीकार कर अकेला विचर सकता है । .
आठ प्रकार का योनि संग्रह कहा गया है यथा - १. अण्डज - अण्डे से पैदा होने वाले जीव, पक्षी आदि । २. पोतज - पोत यानी कोथली सहित पैदा होने वाले जीव, जैसे हाथी आदि । ३. जरायुज - जरायु सहित पैदा होने वाले जीव । जैसे मनुष्य, गाय, भैंस, मृग आदि । ये जीव जब गर्भ से बाहर आते हैं तब इनके शरीर पर एक झिल्ली रहती है, उसी को जरायु कहते हैं । उससे निकलते ही ये हलन चलन आदि करते हैं । ४. रसज - दूध, दही, घी, आदि तरल पदार्थ रस कहलाते हैं, उनके विकृत हो जाने पर उनमें पड़ने वाले जीव रसज कहलाते हैं । ५. संस्वेदज - पसीने से पैदा होने वाले जीव जूं, लीख आदि । ६. सम्मूर्च्छिम - शीत, उष्ण आदि का निमित्त मिलने पर आसपास के परमाणुओं से पैदा होने वाले जीव जैसे मच्छर, पिपीलिका, आदि । ७. उद्भिज - उद्भेद अर्थात् जमीन को फोड़ कर उत्पन्न होने वाले जीव जैसे - पतंगिया, टिड्डी फाका, खंजरीट, ममोलिया आदि । ८. औपपातिक - उपपात जन्म से उत्पन्न होने वाले जीव । देव शय्या से पैदा होते हैं और नैरयिक जीव कुम्भी से पैदा होते हैं । अतः देव और नैरयिक जीव औपपातिक कहलाते हैं । अण्डज जीवों में आठ की गति और आठ की आगति कही गई है यथा - अण्डज जीवों में उत्पन्न होने वाला अण्डज जीव अण्डजों से अथवा पोतजों से यावत् औपपातिक जीवों में से आकर उत्पन्न हो सकता है । अण्डज पने को छोड़ता हुआ वही अण्डज जीव अण्डजों में, पोतजों में यावत् औपपातिकों मे जाकर उत्पन्न हो सकता है । इसी तरह पोतज और जरायुज जीवों में भी आठ की गति और आठ की आगति होती है । शेष रसज, संस्वेदज, सम्मूर्छिम, उद्भिज और औपपातिक जीवों में आठ की गति और आठ की आगति नहीं है किन्तु इनकी गति आगति भिन्न भिन्न है ।
सब जीवों ने आठ कर्मप्रकृतियों का सञ्चय किया है, सञ्चय करते हैं और सञ्चय करेंगे यथा -
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