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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
सब जीव सात प्रकार के कहे गये हैं यथा - पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेउकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, त्रसकायिक और अकायिक यानी सिद्ध भगवान् । अथवा दूसरी तरह से सब जीव सात प्रकार के कहे गये हैं यथा - कृष्णलेश्या वाला, नीललेश्या वाला, कापोत लेश्या वाला, तेजोलेश्या वाला, पद्मलेश्या वाला और शुक्ललेश्या वाला, लेश्यारहित यानी चौदहवें गुणस्थानवर्ती अयोगी केवली और सिद्ध भगवान् । .
ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती, मल्लिनाथ के साथ दीक्षित राजा ___ बंभदत्ते णं राया चाउरंत चक्कवट्टी सत्त धणूई उखु उच्चत्तेणं, सत्त य वाससयाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा अहे सत्तमाए पुढवीए अप्पइट्ठाणे णरए णेरइयत्ताए उववण्णे । मल्ली णं अरहा अप्पसत्तमे मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए तंजहा - मल्ली विदेहवरराय कण्णगा, पडिबुद्धी इक्खागराया, चंदच्छाए अंगराया, रुप्पी कुणालाहिवई, संखे कासीराया, अदीणसत्तू कुरुराया, जियसत्तू पंचालराया॥७४॥ .
कठिन शब्दार्थ - अप्पसत्तमे - आत्म सप्तम, विदेहवरराय कण्णगा - विदेह राज की कन्या।
भावार्थ - ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती सात धनुष ऊंचे शरीर वाला था और काल के अवसर पर काल करके नीचे की सातवीं नरक के अप्रतिष्ठान नरकावास में नैरयिक रूप से उत्पन्न हुआ । उन्नीसवें तीर्थकर भगवान् मल्लिनाथ स्वामी ने आत्मसप्तम यानी छह अन्य राजाओं ने और सातवें आप स्वयं ने इस प्रकार सात व्यक्तियों ने एक साथ मुण्डित होकर दीक्षा ली थी यथा - विदेहराज की कन्या भगवान् मल्लिनाथ, इक्ष्वाकुदेश का राजा प्रतिबुद्धि, अङ्गदेश का राजा चन्द्रच्छाय, कुणाल देश का राजा रुक्मी, काशी देश का राजा अदीनशत्रु और पञ्चाल देश का राजा जितशत्रु । .
विवेचन - भगवान् मल्लिनाथ के पूर्व भव के साथी होने के कारण इन छह राजाओं के ही नाम दिए गए हैं। वैसे तो भगवान् के साथ ३०० स्त्री और ३०० पुरुषों ने दीक्षा ली थी। भगवान् मल्लिनाथ स्वामी का और इन छह राजाओं का विस्तार पूर्वक वर्णन 'ज्ञाताधर्मकथाङ्ग' सूत्र के आठवें अध्ययन में है । जिज्ञासुओं को वहां से देखना चाहिये।
दर्शन, कर्म प्रकृति वेदन, छद्मस्थ-केवली का विषय सत्तविहे दंसणे पण्णत्ते तंजहा - सम्मदंसणे, मिच्छदंसणे, सम्मामिच्छदंसणे, चक्खुदंसणे, अचक्खुदंसणे, ओहिदंसणे, केवलदंसणे । छउमत्थ वीयरागेणं मोहणिज्ज वज्जाओ सत्त कम्मपयडीओ वेएइ तंजहा - णाणावरणिजं, दंसणावरणिग्जं, वेयणीयं, आउयं, णामं, गोयं, अंतराइयं । सत्त ठाणाई छउमत्थे सव्वभावेणं ण जाणइ ण
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