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स्थान ७
१८७ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 पासइ तंजहा - धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आगासस्थिकायं, जीवं असरीर पडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सई, गंधं । एयाणि चेव उप्पण्ण णाणदंसण धरे केवली सव्वभावेणं जाणइ पासइ तंजहा - धम्मत्थिकायं जाव गंधं । समणे भगवं महावीरे वइरोसभणाराय संघयणे समचउरंस संठाणसंठिए सत्त रयणीओ उड्डे उच्चत्तेणं हुत्था ।
विकथाएँ, सात अतिशय . ___ सत्त विकहाओ पण्णत्ताओ तंजहा - इत्थिकहा, भत्तकहा, देसकहा, रायकहा, मिउकालुणिया, दंसणभेयणी, चरित्तभेयणी । आयरिय उवज्झायस्स णं गणंसि सत्त अइसेसा पण्णत्ता तंजहा - आयरिय उवज्झाए अंतो उवस्सगस्स पाए णिगिझिय णिगिज्झिय पप्फोडेमाणे वा पमज्जमाणे वा णाइक्कमइ एवं जहा पंचट्ठाणे जाव आयरिय उवज्झाए बाहिं उवस्सगस्स एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे णाइक्कमइ, उवगरणाइसेसे, भत्तपाणाइसेसे।
___ संयम, असंयम,आरम्भ और अनारंभ . सत्तविहे संजमे पण्णत्ते तंजहा - पुढविकाइयसंजमे जाव तसकाइयसंजमे अजीवकायसंजमे सत्तविहे असंजमे पण्णत्ते तंजहा - पुढविकाइयअसंजमे जाव तसकाइयअसंजमे अजीवक यअसंजमे । सत्तविहे आरंभे पण्णत्ते तंजहा - पुढविकाइय आरंभे जाव अजीवकाय आरंभे । एवमणारंभे वि, एवं सारंभे वि, एवमसारंभे वि, एवं समारंभे वि, एवमसमारंभे वि, जाव अजीवकायसमारंभे॥७५॥
कठिन शब्दार्थ - छउमस्थ वीयरागे - छद्मस्थ वीतराग, मिउकालुणिया - मृदुकारुणिकी, दसणभेयणी - दर्शन भेदिनी, चरित्तभेयणी - चारित्र भेदिनी, उवगरणाइसेसे - उपकरणातिशय, भत्तपाणाइसेसे - भक्तपानातिशय, अणारंभे - अनारम्भ, सारंभे - सारम्भ, असारंभे - असारम्भ, समारंभे- समारम्भ ।
भावार्थ - सात प्रकार का दर्शन कहा गया है यथा - सम्यग्दर्शन, मिथ्यादर्शन, सम्यमिथ्यादर्शन, यानी मिश्रदर्शन, चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन,, अवधिदर्शन और केवलदर्शन । छद्मस्थ वीतराग यानी उपशान्तकषाय मोहनीय वाला या क्षीणकषायमोहनीय वाला व्यक्ति मोहनीय कर्म को छोड़ कर शेष सात कर्मों का वेदन करता है यथा - ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र और अंतराय । छद्मस्थ व्यक्ति सात बातों को सर्वभाव से नहीं जान सकता है और नहीं देख सकता है यथा- धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, शरीररहित जीव, परमाणु पुद्गल, शब्द और
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