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________________ स्थान ७ १८५ सुषमा - अवसर्पिणी काल का दूसरा आरा तथा उत्सर्पिणी काल का पांचवां आरा सुषमा कहलाता है । यह काल तीन कोडाकोडी सागरोपम तक रहता है । सात बातों से सुषमा काल का आगमन या प्रभाव जाना जाता है । सुषमा आरा आने पर अकाल में वर्षा नहीं होती है । काल में यानी ठीक समय पर वर्षा होती है । असाधु यानी असंयति की पूजा नहीं होती है । साधु और सज्जन पुरुष पूजे जाते हैं । लोग माता पिता तथा गुरुजनों का विनय करते हैं । लोग प्रसन्न मन और प्रेमभाव वाले होते हैं । लोग मीठे और दूसरे को आनन्ददायक वचन बोलते हैं। संसारी जीव भेद सत्तविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता तंजहा - णेरइया, तिरिक्खजोणिया, तिरिक्खजोणीओ, मणुस्सा, मणुस्सीओ, देवा, देवीओ। _ अकाल मृत्यु के कारण पुकारण - सत्तविहे आउभेए पण्णत्ते तंजहा - अज्झवसाण णिमित्ते, आहारे वेयणा पराघाए । .... फासे आणापाण, सत्तविहं भिज्जए आउं ॥१॥ . सर्व जीव भेद सत्तविहा सव्वजीवा पण्णत्ता तंजहा - पुढविकाइया, आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया तसकाइया, अकाइया । अहवा सत्तविहा सव्वजीवा पण्णत्ता तंजहा - कण्हलेसा जाव सुक्कलेसा, अलेस्सा॥७३॥ ___ कठिन शब्दार्थ - आउभेए - आयुभेद, अज्झवसाण - अध्यवसान, णिमित्ते - निमित्त, फासे - स्पर्श, आणापाणू-आण प्राण-श्वासोच्छ्वास, भिजए - भेदन होता है। . भावार्थ - संसारी जीव सात प्रकार के कहे गये हैं यथा - नैरयिक, तिर्यञ्च, तिर्यञ्चणी, मनुष्य मनुष्यणी यानी स्त्री, देव और देवी । - . आयुभेद - बांधी हुई आयुष्य पूरी किये बिना बीच ही में मृत्यु हो जाना आयुभेद है । यह सोपक्रम आयुष्य वाले के ही होता है । इसके सात कारण कहे गये हैं यथा - १. अध्यवसान यानी राग : स्नेह या भयरूप प्रबल मानसिक आघात होने पर बीच में ही आयु टूट जाती है । २. निमित्त - शस्त्र, दण्ड आदि का निमित्त पाकर आयु टूट जाती है । ३. आहार - अधिक भोजन कर लेने पर, ४. वेदनाशूल आदि की असह्य वेदना होने पर, ५. पराघात - गड्ढे आदि में गिरना वगैरह बाह्य आघात पाकर, स्पर्श - सांप आदि के काट लेने पर या ऐसी वस्तु का स्पर्श होने पर जिसके छूने से शरीर में जहर फैल जाय, ७. आणप्राण - यानी श्वासोच्छ्वास की गति को बन्द कर देने से बीच ही में आयु टूट जाती है । इस प्रकार इन सात कारणों से व्यवहार नय के मतानुसार आयु बीच ही में टूट जाती है ।।१॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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