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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 ___ जंबूहीवे दीवे भारहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए सत्त कुलगरा भविस्संति तंजहा
मित्तवाहण सुभूमे य, सुप्पभे य सयंपभे ।
दत्ते सुहुमे सुबंधू य, आगमेस्सिण होक्खइ ॥ ४॥ विमलवाहणे णं कुलगरे सत्तविहा रुक्खा उवभोगत्ताए हव्वमागच्छिंसु तंजहार
मत्तंगया य भितांगा चित्तंगा चेव होंति चित्तरसा ।
मणियंगा य अणियणा, सत्तमगा कप्परुक्खा य ॥५॥ . " . सत्तविहा दंडणीई पण्णत्ता तंजहा - हक्कारे, मक्कारे, धिक्कारे, परिभासे, मंडलबंधे, चारए, छविच्छेए॥७॥
- कठिन शब्दार्थ - कुलगरा - कुलकर, रुक्खा - वृक्ष, उवभोगत्ताए - उपभोग में, मत्तंगया - मतगा, भितांगा - भृङ्गा, चित्तंगा - चित्राङ्गा, चित्तरसा - चित्ररसा, मणियंगा - मणिअंगा, अणियणाअनग्ना दंडणीई - दण्डनीति, हक्कारे - हकार दण्ड मक्कारे - मकार दण्ड, धिक्कारे - धिक्कार दण्ड, मंडलबंधे - मण्डल बन्ध, चारए - चारक, छविच्छेए - छविच्छेद ।
भावार्थ - इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में गत उत्सर्पिणी में सात कुलकर हुए थे । उनके नाम इम्र प्रकार हैं - मित्रदाम, सुदाम, सुपार्श्व, स्वयम्प्रभ, विमलघोष, सुघोष और महाघोष ।।१॥ ___इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल में सात कुलगर हुए थे। उनके नाम इस प्रकार हैं - इन सातों में पहला विमलवाहन, चक्षुष्मान्, यशस्वान्, अभिचन्द्र, प्रश्रेणी, मरुदेव
और नाभि ।। २॥ • इन सात कुलकरों की सात भार्याएं थीं। उनके नाम इस प्रकार हैं - चन्द्रयशा, चन्द्रकान्ता, सुरूपा, प्रतिरूपा, चक्षुष्कान्ता, श्रीकान्ता और मरुदेवी । ये कुलकरों की भार्याओं के नाम हैं। इनमें मरुदेवी भगवान् ऋषभदेव,स्वामी की माता थी और उसी भव में सिद्ध हुई है ।।३॥
इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी काल में सात कुलकर होंगे। उनके नाम इस प्रकार हैं - मित्रवाहन, सुभूम, सुप्रभ, स्वयंप्रभ, दत्त, सूक्ष्म और सुबन्धु । ये सात कुलकर आगामी उत्सर्पिणी काल में होंगे ॥४॥
वर्तमान अवसर्पिणी के प्रथम कुलकर विमलवाहन के समय सात प्रकार के वृक्ष उपभोग में आते थे । उनके नाम इस प्रकार हैं - मतङ्गा - पौष्टिक रस देने वाले । भृताङ्गा - पात्र आदि देने वाले - चित्राङ्गा - विविध प्रकार के फूल देने वाले । चित्ररसा - विविध प्रकार के भोजन देने वाले ।
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