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________________ स्थान ७ १८३ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 मणिअङ्गा - आभूषण देने वाले । अनग्ना - वस्त्र आदि देने वाले और सातवां कल्पवृक्ष अन्य इच्छित वस्तु देने वाले। ये सात प्रकार के वृक्ष उस समय थे ।।५॥ दण्डनीति - अपराधी को दुबारा अपराध करने से रोकने के लिए कुछ कहना या कष्ट देना . दण्डनीति है। इसके सात भेद हैं यथा - १. हकार दण्ड - 'हा' तुमने यह क्या किया ? इस प्रकार कहना। २. मकार दण्ड - 'फिर ऐसा मत करना' इस तरह निषेध करना। ३. धिक्कार दण्ड - किये हुए अपराध के लिए उसे धिक्कार देना । ४. परिभाष क्रोध से अपराधी को 'मत जाओ' इस प्रकार कहना । ५. मण्डलबन्धं - नियमित क्षेत्र से बाहर जाने के लिए रोक देना । ६. चारक - अपराधी को कैद में डाल देना । ७. छविच्छेद - चमड़ी आदि का छेद करना अथवा हाथ पैर नाक आदि काट डालना । . विवेचन - कुलकर - अपने अपने समय के मनुष्यों के लिए जो व्यक्ति मर्यादा बांधते हैं, उन्हें कुलकर कहते हैं। ये ही सात कुलकर सात मनु भी कहलाते हैं। वर्तमान अवसर्पिणी के तीसरे आरे के अन्त में सात कुलकर हुए हैं। कहा जाता है, उस समय १० प्रकार के वृक्ष कालदोष के कारण कम हो गए। यह देख कर युगलिए अपने अपने वृक्षों पर ममत्व करने लगे। यदि कोई युगलिया दूसरे के वृक्ष से फल ले लेता तो झगड़ा खड़ा हो जाता। इस तरह कई जगह झगड़े खड़े होने पर युगलियों ने सोचा कोई पुरुष ऐसा होना चाहिए जो सब के वृक्षों की मर्यादा बाँध दे। वे किसी ऐसे व्यक्ति को खोज ही रहे थे कि उनमें से एक युगल स्त्री पुरुष को वन के सफेद हाथी ने अपने आप सूंड से उठा कर अपने ऊपर बैठा लिया। दूसरे युगलियों ने समझा यही व्यक्ति हम लोगों में श्रेष्ठ है और न्याय करने लायक है। सबने उसको अपना राजा माना तथा उसके द्वारा बाँधी हुई मर्यादा का पालन करने लगे। ऐसी कथा प्रचलित है। ___ पहले कुलकर का नाम विमलवाहन है। बाकी के छह इसी कुलकर के वंश में क्रम से हुए। सातों के नाम इस प्रकार हैं - १. विमलवाहन २. चक्षुष्मान् ३. यशस्वान ४. अभिचन्द्र ५. प्रश्रेणी ६. मरुदेव और ७. नाभि। सातवें कुलकर नाभि के पुत्र भगवान् ऋषभदेव हुए। विमलवाहन कुलकर के समय सात ही प्रकार के वक्ष थे। उस समय त्रटितांग, दीप और ज्योति तथा गेहागारा नाम के वक्ष नहीं थे। ये चार वक्ष कम हो गये थे। इन चारों की पूर्ति करने के लिए एक सातवां वृक्ष कायम किया गया था। यह देवाधिष्ठित था और चारों वृक्षों की पूर्ति करने वाला होने से इसे 'कल्पवृक्ष' कहा गया। चक्रवर्ती रत्न - . एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंत चक्कवट्ठिस्स णं सत्त एगिदिय रयणा पण्णत्ता तंजहा - चक्करयणे, छत्तरयणे, चस्मरयणे, दंडरयणे, असिरयणे, मणिरयणे, काकणिरयणे । एगमेस्स णं रण्णो चाउरंत चक्कवट्टिस्स सत्त पंचिंदिय रयणा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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