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स्थान
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६. स्वप्नान्तिक प्रतिक्रमण - सो कर उठने पर किया जाने वाला प्रतिक्रमण स्वप्नान्तिक प्रतिक्रमण है, अथवा स्वप्न देखने पर उसका प्रतिक्रमण करना स्वप्नान्तिक प्रतिक्रमण है ।
कृचिका नक्षत्र छह तारों वाला कहा गया है । अश्लेषा नक्षत्र छह तारों वाला कहा गया है । पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और त्रसकाय इन छह कायों से निर्वर्तित पुद्गलों को जीवों ने पाप कर्म रूप से सञ्चय किये थे, सञ्चय करते हैं और सञ्चय करेंगे । जिस प्रकार "चिण' यानी सञ्चय करने का कहा गया है । उसी तरह उपचय, बन्ध, उदीरणा, वेदना तथा निर्जरा के लिए भी कह देना चाहिए । छह प्रदेशी स्कन्ध अनन्त कहे गये हैं। छह आकाशप्रदेशों का अवगाहन करने वाल पुद्गल अनन्त कहे गये हैं । छह समय की स्थिति वाले पदगल अनन्त कहे गये हैं। छह गुण काले यावत् छह गुण रूक्ष पुद्गल अनन्त कहे गये हैं।
विवेचन - स्वप्नान्तिक प्रतिक्रमण के लिये 'इच्छामि पडिक्कमिउं पगामसिज्जाए' का पाठ बोला जाता है। स्वप्न में प्राणातिपात आदि पांच आस्रव का सेवन हो गया हो तो उसकी शुद्धि के लिये कायोत्सर्ग का विधान इस प्रकार है -
पाणि वह मुसावाए अदत्तमेहुण परिग्गहे चेव। सयमेगं तु अणूणं, उसासाणं हवेज्जाहि॥
- प्राणीवध, मृषावाद, अदत्त, मैथुन और परिग्रह के संबंध में स्वप्न में दोष लगा हो, लगवाया हो और दोष लगाने वाले को भला जाना हो तो उसके लिये चार लोगस्स का काउस्सग्ग करना चाहिए।
॥ इति छठा स्थान समाप्त ।।
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