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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
भव या क्षयोपशम से प्राप्त लब्धि के कारण रूपी द्रव्यों को विषय करने वाला अतीन्द्रिय ज्ञान अवधिज्ञान कहलाता है। अवधिज्ञान के छह भेद हैं। जिनका वर्णन भावार्थ में किया गया है।
बुरे वचनों को अप्रशस्त वचन कहते हैं। वे साधु साध्वियों को बोलना नहीं कल्पते हैं। इनके उपरोक्तानुसार छह भेद कहे हैं।
कल्प प्रस्तार, कल्पपलिमंथू छ कप्पस्स पत्थारा पण्णत्ता तंजहा - पाणाइवायस्स वायं वयमाणे, मुसावायस्स वायं वयमाणे, अदिण्णादाणस्स वायं वयमाणे, अविरइवायं वयमाणे, अपुरिसवायं वयमाणे, दासवायं वयमाणे, इच्चेए छ कप्पस्स पत्थारे पत्थरित्ता सम्मं अपरिपूरमाणो तट्ठाणपत्ते । छ कप्पस्स पलिमंथू पण्णत्ता तंजहा - कुक्कुइए संजमस्स पलिमंथू, मोहरिए सच्चवयणस्स पलिमंथू, चक्खुलोलुए ईरियावहियाए पलिमंथू, तितिणिए एसणागोयरस्स पलिमंथू, इच्छालोभिए मुत्तिमग्गस्स पलिमंथू, भिजा णियाणकरणे मोक्खमग्गस्स पलिमंथू, सव्वत्थ भगवया अणियाणया पसत्था । .
कल्पस्थिति छविहा कप्पठिई पण्णत्ता तंजहा - सामाइय कप्पठिई, छेओवट्ठावणिय कप्पठिई, मिविसमाण कप्पठिई, णिविट्ठकप्पठिई, जिणकप्पठिई, थिविरकप्पठिई । समणे .. भगवं महावीरे छटेणं भत्तेणं अपाणएणं मुंडे जाव पव्वइए।
समणस्स भगवओ महावीरस्स छद्रेणं भत्तेणं अपाणएणं अणंते अणुत्तरे जाव केवलवरणाण दंसणे समुप्पण्णे । समणे भगवं महावीरे छटेणं भत्तेणं अपाणएणं सिद्धे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे। .
सणंकुमार माहिंदेसु णं कप्पेसु विमाणा छ जोयणसयाई उड्डे उच्चत्तेणं पण्णत्ता। सणंकुमार माहिंदेसु णं कप्पेसु देवाणं भव धारणिजगा सरीरगा उक्कोसेणं छ रयणीओ उड्डे उच्चत्तेणं पण्णत्ता॥५७॥ ___ कठिन शब्दार्थ - कप्पस्स - कल्प के, पत्थारा - प्रस्तार, तट्ठाणपत्ते - उस स्थान को प्राप्त, पलिम) - मंथन-घात करने वाले, कुक्कुइए - कौकुचिक, मोहरिए - मौखरिक, चक्खुलोलुए - चक्षुलोलुप, तितिणिए - तिंतिणक, कप्पठिई - कल्पस्थिति। __ भावार्थ - कल्प यानी संयम के छह प्रस्तार यानी प्रायश्चित्त कहे गये हैं । यथा - हिंसा की बात कहना यानी हिंसा न करने पर भी किसी व्यक्ति पर हिंसा का दोष लगाना । मृषावाद बोलना यानी झूठ
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