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श्री स्थानांग सूत्र
न्यूनतिथि वाले पर्व छह
अमावस्या या पूर्णिमा को पर्व कहते हैं। इनसे युक्त पक्ष भी पर्व कहा जाता है। चन्द्र मास की अपेक्षा छह पक्षों में एक एक तिथि घटती है। वे इस प्रकार हैं -
१. आषाढ़ का कृष्णपक्ष २. भाद्रपद का कृष्णपक्ष ३. कार्तिक का कृष्णपक्ष ४. पौष का कृष्णपक्ष ५. फाल्गुन का कृष्णपक्ष ६. वैशाख का कृष्णपक्ष।
अधिक तिथि वाले पर्व छह
सूर्यमास की अपेक्षा छह पक्षों में एक एक तिथि बढ़ती है। वे इस प्रकार हैं - १. आषाढ़ का शुक्लपक्ष २. भाद्रपद का शुक्लपक्ष ३. कार्तिक का शुक्लपक्ष ४. पौष का शुक्लपक्ष ५. फाल्गुन का शुक्लपक्ष ६. वैशाख का शुक्लपक्ष।
अर्थावग्रह, अवधिज्ञान के भेद आभिणिबोहिय णाणसणं छबिहे अत्योग्गहे पण्णते तंजहा - सोइंदियत्थोग्गहे जाव णोइंदियत्थोग्गहे । छविहे ओहिणाणे पण्णत्ते तंजहा - आणुगामिए, अणाणुगामिए, वहुमाणए, हीयमाणए, पडिवाई, अपडिवाई।
कुत्सित वचन . णो कप्पइ णिग्गंथाणं वा णिग्गंथीणं इमाई छ अवयणाई वइत्तए तंजहा - अलियवयणे, हीलियवयणे, खिंसियवयणे, फरुसवयणे, गारत्थियवयणे, विउसमियं वा पुणो उदीरित्तए॥५६॥
कठिन शब्दार्थ - अत्योग्गहे - अर्थावग्रह, अवयणाई - कुत्सित वचन, बहत्तए - बोलना, अलीयवयणे - अलीक वचन, हीलियवयणे - हीलित वचन, खिंसियवयणे - खिंसित वचन, फरुसवयणे - परुष वचन, गारत्थियवयणे- गृहस्थ वचन, विठसमियं - व्युपशमित।
भावार्थ - आभिनिबोधिक ज्ञान यानी मतिज्ञान का अर्थावग्रह छह प्रकार का है । यथा - श्रोत्रेन्द्रिय अर्थावग्रह, चक्षु इन्द्रिय अर्थावग्रह, घ्राणेन्द्रिय अर्थावग्रह, रसनेन्द्रिय अर्थावग्रह, स्पर्शनेन्द्रिय अर्थावग्रह और नोइन्द्रिय अर्थात् मन सम्बन्धी. अर्थावग्रह । अवधिज्ञान छह प्रकार का कहा गया है । यथा - १. आनुगामिक - जो अवधिज्ञान नेत्र की तरह ज्ञानी का अनुगमन करता है अर्थात् उत्पत्ति स्थान को छोड़ कर ज्ञानी के देशान्तर जाने पर भी साथ रहता है वह आनुगामिक अवधिज्ञान है । २. अनानुगामिक - जो अवधिज्ञान स्थिर प्रदीप की तरह ज्ञानी का अनुसरण नहीं करता अर्थात् उत्पत्ति स्थान को छोड़ कर ज्ञानी के दूसरी जगह चले जाने पर नहीं रहता वह अनानुगामिक अवधिज्ञान है। ३. वर्धमान - जैसे अग्नि की ज्वाला ईंधन पाने पर अधिकाधिक बढ़ती जाती है, उसी प्रकार जो
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