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________________ स्थान ६ इन्द्रिय जीवों का आरम्भ यानी हिंसा न करने वाले पुरुष को छह प्रकार का संयम होता है यथा - वह तेइन्द्रिय जीव को घ्राणेन्द्रिय सम्बन्धी सुख से वञ्चित नहीं करता है और उसे घ्राणेन्द्रिय सम्बन्धी दुःख का संयोग नहीं करवाता है। वह जिह्वेन्द्रिय सम्बन्धी सुख से वञ्चित नहीं करता है और उसे जिह्वेन्द्रिय सम्बन्धी दुःख का संयोग नहीं करवाता है। वह स्पर्शनेन्द्रिय सम्बन्धी सुख से वञ्चित नहीं करता है और उसे स्पर्शनेन्द्रिय सम्बन्धी दुःख का संयोग नहीं करवाता है। तेइन्द्रिय जीवों का आरम्भ यानी हिंसा करने वाले पुरुष को छह प्रकार का असंयम होता है यथा- वह तेइन्द्रिय जीव को घ्राणेन्द्रिय सम्बन्धी सुख से वञ्चित करता है और उसे घ्राणेन्द्रिय सम्बन्धी दुःख का संयोग करवाता है। यावत् उसे स्पर्शनेन्द्रिय सम्बन्धी दुःख का संयोग करवाता है । विवेचन - इस भरत क्षेत्र के तीन तरफ समुद्र है और चौथी तरफ हिमवान् पर्वत है तरफ से घिरी हुई समुद्र पर्यन्त सम्पूर्ण पृथ्वी का जो स्वामी हो वह चातुरन्त कहलाता है चक्रवर्ती हो वह चातुरन्त चक्रवर्ती कहलाता है । 1 । ऐसा जो जंबूद्वीप वर्णन Jain Education International १४१ जंबूद्दीवे दीवे छ अकम्मभूमीओ पण्णत्ताओ तंजहा - हेमवए, हिरण्णवए, हरिवासे, रम्मगवासे, देवकुरा, उत्तरकुरा । जंबूद्दीवे दीवे छव्वासा पण्णत्ता तंजहा - भरहे, एरवए, हेमवए, हिरण्णवए, हरिवासे, रम्मगवासे । जंबूहीवे दीवे छ वासहरपव्वया पण्णत्ता तंजहा - चुल्लहिमवंते, महाहिमवंते, णिसढे, णीलवंते, रूप्पी, सिहरी । जंबूमंदर दाहिणेणं छ कूडा पण्णत्ता तंजहा- चुल्लहिमवंतकूडे, वेसमणकूडे, महाहिमवंतकूडे, वेरुलियकूडे, णिसढकूडे, रुयगकूडे । जंबूमंदर उत्तरेणं छ कूडा पण्णत्ता तंजहा - णीलवंतकूडे, उवदंसणकूडे, रुप्पिकूडे, मणिकंचणकूडे, सिहरिकूडे, तिगच्छकूडे । जंबूद्दीवे दीवे छ महहहा पण्णत्ता तंजहा - पउमद्दहे, महापडमहे, तिगिच्छद्दहे, केसरिहे, महापुंडरीयहहे, पुंडरीयद्दहे । तत्थ णं छ देवयाओ महड्डियाओ जाव पलिओवम ठिझ्याओ परिवसंति तंजहा - सिरी, हिरी, धिई, कित्ती, बुद्धी, लच्छी । जंबूमंदर दाहिणेणं छ महाणईओ पण्णत्ताओ तंजहा - गंगा, सिंधू, रोहिया, रोहितंसा, हरी, हरिकंता । जंबूमंदर उत्तरेणं छ महाणईओ पण्णत्ताओ तंजहा णकंता, नारीकंता, सुवण्णकूला, रुप्पकूला, रत्ता, रत्तवई । जंबूमंदर पुरच्छिमेणं सीयाए महाणईए उभयकूले छ अंतरणईओ पण्णत्ताओ तंजहा गाहावई, दहावई, पंकवई, तत्तजला, मजला, उम्मत्तजला । जंबूमंदर पच्चत्थिमेणं सीओयाए महाणईए For Personal & Private Use Only - । इन चारों www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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