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श्री स्थानांग सूत्र
• रत्नप्रभा पृथ्वी से लेकर सातवीं तमतमा पृथ्वी पर्यन्त पाथडों की संख्या क्रमश: इस प्रकार है - तेरह, ग्यारह, नौ, सात, पांच, तीन और एक । प्रत्येक नरक में दो तरह के नरकावास हैं- आवलिका प्रविष्ट और पुष्पावकीर्ण। प्रस्तुत सूत्र में जिस जिस नरक में छह-छह अपक्रान्त महानरकावास हैं उन्हीं का उल्लेख किया है। ये सभी आवलिका प्रविष्ट हैं। इन अपक्रान्त नरकावासों में एकान्त अधर्मी जीव ही उत्पन्न होते हैं।
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तेइन्द्रिय जीवों का संयम, असंयम
अभिचंदे णं कुलकरे छ धणुसयाई उड्डुं उच्चत्तेणं हुत्था । भरहे र्ण राया चाउरंतचक्कवट्टी छ पुव्व सयसहस्साइं महाराया हुत्था । पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स छ सया वाईणं सदेवमणुयासुराए परिसाए अपराजियाणं संपया होत्था । वासुपूज्जे ण अरहा छहिं पुरिससएहिं सद्धिं मुंडे जाव पव्वइए । चंदप्पभे गं अरहा छम्मासे छउमत्थे होत्था । तेइंदियाणं जीवाणं असमारभमाणस्स छव्विहे संजमे कज्जइ तंजहा - घाणामयाओ सोक्खाओ अववरोवित्ता भवइ, घाणामएणं दुक्खेणं असंजोइता भवइ जिब्धामयाओ सोक्खाओ अववरोवित्ता भवइ, जिब्धामएणं दुक्खेणं अंसजोइता भवइ, फासामयाओ सोक्खाओ अववरोवित्ता भवइ, फासामएणं दुक्खेणं असंजोइता भवइ । तेइंदियाणं जीवाणं समारभमाणस्स छव्विहे असंजमे कज्जइ तंजा - घाणामयाओ सोक्खाओ ववरोवित्ता भवइ, घाणमएणं दुक्खेणं संजोइता भवइ, जाव फासमएणं दुक्खेणं संजोइता भवइ ॥ ५४ ॥
कठिन शब्दार्थ- पुरिसादाणीयस्स - पुरुषों में आदरणीय-पुरुषों में सर्वोत्तम, सदेवमणुयासुराएदेव, मनुष्य और असुरों की, अपराजियाणं- अपराजित-न जीते जा सकने वाले, असमारभमाणस्स आरम्भ यानी हिंसा न करने वाले पुरुष का, सोक्खाओ सुख से, अववरोवित्ता - वंचित नहीं होता है, दुक्खेणं - दुःख से।
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भावार्थ: - इस अवसर्पिणी काल के चौथे कुलकर अभिचन्द्र के शरीर की ऊंचाई छह सौ धनुष की थी । चतुरन्त यानी सम्पूर्ण भरत क्षेत्र का स्वामी प्रथम चक्रवर्ती भरत राजा ने छह लाख पूर्व तक राज्य किया था। पुरुषों में आदरणीय यानी पुरुषों में सर्वोत्तम तेईसवें तीर्थङ्कर भगवान् पार्श्वनाथ स्वामी के देव, मनुष्य और असुरों की सभा में न जीते जा सकने वाले छह सौ वादी थे। बारहवें तीर्थङ्कर श्री वासुपूज्य स्वामी छह सौ पुरुषों के साथ मुण्डित यावत् प्रव्रजित हुए थे। आठवें तीर्थङ्कर श्री चन्द्रप्रभ स्वामी छह महीने तक छद्मस्थ रहे थे ।
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