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स्थान ६
१३३ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 शुक्ल ध्यान का अभ्यास करता है। वह प्रशान्त चित्त और आत्मा का दमन करने वाला होता है एवं पांच समिति तीन गुप्ति का आराधक होता है। अल्प राग वाला अथवा वीतराग हो जाता हैं। उसकी आकृति सौम्य एवं इन्द्रियाँ संयत होती हैं। यह परिणाम शक्ल लेश्या है।
छह लेश्याओं का स्वरूप समझाने के लिये शास्त्रकारों ने दो दृष्टान्त दिये हैं। वे नीचे लिखे अनुसार हैं -
छह पुरुषों ने एक जामुन का वृक्ष देखा। वृक्ष पके हुए फलों से लदा था। शाखाएं नीचे की ओर झुका रही थी। उसे देख कर उन्हें फल खाने की इच्छा हुई। सोचने लगे, किस प्रकार इसके फल खाये जायं? एक ने कहा -"वृक्ष पर चढ़ने में तो गिरने का खतरा है इसलिये इसे जड़ से काट कर गिरा दे और सुख से बैठ कर फल खावें" यह सुन कर दूसरे न कहा - "वृक्ष को जड़ से काट कर गिराने से क्या लाभ ? केवल बड़ी-बड़ी डालियाँ ही क्यों न काट ली जाय" इस पर तीसस बोला-"बड़ी-बड़ी डालियाँ न काट कर छोटी-छोटी डालियां ही क्यों न काट ली जायं ? क्योंकि फल तो छोटी डालियों में ही लगे हुए हैं।" चौथे को यह बात पसन्द न आई, उसने कहा - "नहीं, केवल फलों के गुच्छे ही तोड़े जाय। हमें तो फलों से ही प्रयोजन है।" पांचवे ने कहा - "गुच्छे भी तोड़ने की जरूरत नहीं है, केवल पके हुए फल ही नीचे गिरा दिये जाय।" यह सुन कर छठे ने कहा - "जमीन पर काफी फल गिरे हुए हैं, उन्हें ही खा लिये जायं। अपना मतलब तो इन्हीं से सिद्ध हो जायेगा।" • दूसरा दृष्टान्त इस प्रकार है। छह क्रूर कर्मी डाकू किसी ग्राम में डाका डालने के लिए रवाना हुए। रास्ते में वे विचार करने लगे। उनमें से एक ने कहा "जो मनुष्य या पशु दिखाई दें सभी मार दिये जाय।" यह सुन कर दूसरे ने कहा "पशुओं ने हमारा कुछ नहीं बिगाड़ा है। हमारा तो मनुष्यों के साथ विरोध है इसलिये उन्हीं का वध करना चाहिये।" तीसरे ने कहा - नहीं, स्त्री हत्या महा पाप है। इसलिये क्रूर परिणाम वाले पुरुषों को.ही मारना चाहिये।" यह सुन कर चौथा बोला - "यह ठीक नहीं। शस्त्र रहित पुरुषों पर वार करना बेकार है। इसलिये हम लोग तो सशस्त्र पुरुषों को ही मारेंगे।" पांचवे चोर ने कहा - "सशस्त्र पुरुष भी यदि डर के मारे भागते हों तो उन्हें नहीं मारना चाहिए। जो शस्त्र लेकर लड़ने आवें उन्हें ही मारा जाय।" अन्त में छठे ने कहा - "हम लोग चोर हैं। हमें तो धन की जरूरत है। इसलिये जैसे धन मिले वही उपाय करना चाहिए। एक तो हम लोगों का धन चोरें और दूसरे उन्हें मारें भी, यह ठीक नहीं है। यों ही चोरी पाप है। इस पर हत्या का महापाप क्यों किया जाय। ___ दोनों दृष्टान्तों के पुरुषों में पहले से दूसरे, दूसरे से तीसरे इस प्रकार आगे आगे के पुरुषों के परिणाम क्रमशः अधिकाधिक शुभ हैं। इन परिणामों में उत्तरोत्तर संक्लेश की कमी एवं मृदुता की अधिकता है। छहों में पहले पुरुष के परिणाम को कृष्ण लेश्या यावत् छठे परिणाम को शुक्ल लेश्या समझना चाहिये।
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