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________________ १३२ श्री स्थानांग सूत्र . प्रकार की हैं। आदिम तीन अविशुद्ध भाव लेश्या है और अंतिम तीन अर्थात् चौथी, पांचवी और छठी विशुद्ध भाव लेश्या हैं। छहों लेश्याओं का स्वरूप इस प्रकार है - १. कृष्ण लेश्या - काजल के समान काले वर्ण के कृष्ण लेश्या-द्रव्य के सम्बन्ध से आत्मा में ऐसा परिणाम होता है कि जिससे आत्मा पांच आस्रवों में प्रवृत्ति करने वाला तीन गुप्ति से अगुप्त, छह काया की विरति से रहित तीव्र आरंभ की प्रवृत्ति सहित, क्षुद्र स्वभाव वाला, गुण दोष का विचार किये बिना ही कार्य करने वाला ऐहिक और पारलौकिक बुरे परिणामों से न डरने वाला अतएव कठोर और. क्रूर परिणामधारी तथा अजितेन्द्रिय हो जाता है। यही परिणाम कृष्ण लेश्या है। २. नील लेश्या - अशोक वृक्ष के समान नीले रंग के नील लेश्या के पुद्गलों का संयोग होने पर आत्मा में ऐसा परिणाम उत्पन्न होता है कि जिससे आत्मा ईर्षा और अमर्ष वाला, तप और सम्यग् ज्ञान से शून्य, माया, निर्लज्जता, गृद्धि, प्रद्वेष, शठता, रसलोलुपता आदि दोषों का आश्रय, साता का गवेषक, आरंभ से अनिवृत्त, तुच्छ और साहसिक हो जाता है। यही परिणाम नील लेश्या है। . ३. कापोत लेश्या - कबूतर के समान रक्त कृष्ण वर्ण वाले द्रव्य कापोत लेश्या के पुद्गलों के संयोग से आत्मा में इस प्रकार का परिणाम उत्पन होता है। कि वह विचारने, बोलने और कार्य करने में वक्र-बन जाता है, अपने दोषों को ढकता है और सर्वत्र दोषों का आश्रय लेता है। वह नास्तिक बन जाता है और अनार्य की तरह प्रवृत्ति करता है। द्वेष पूर्ण तथा अत्यन्त कठोर वचन बोलता है। चोरी करने लगता है। दूसरे की उन्नति को नहीं सह सकता। यह परिणाम कापोत लेश्या है। ४. तेजो लेश्या - तोते की चोंच के समान रक्त वर्ण के द्रव्य तेजो लेश्या के पुद्गलों का सम्बन्ध होने पर आत्मा में ऐसा परिणाम उत्पन्न होता है कि वह अभिमान का त्याग कर मन, वचन और शरीर से नम्र वृत्ति वाला हो जाता है। चपलता शठता और कौतूहल का त्याग करता है। गुरुजनों का उचित विनय करता है। पांचों इन्द्रियों पर विजय पाता है एवं योग (स्वाध्यायादि व्यापार) तथा उपधान तप में निरत रहता है। धर्म कार्यों में रुचि रखता है एवं लिये हुए व्रत प्रत्याख्यान को दृढ़ता के साथ निभाता है। पापं से भय खाता है और मुक्ति की अभिलाषा करता है। इस प्रकार का परिणाम तेजोलेश्या है। ५. पा लेश्या - हल्दी के समान पीले रंग के द्रव्य पद्म लेश्या के पुद्गलों के सम्बन्ध से आत्मा में ऐसा परिणाम होता है कि वह क्रोध, मान, माया, लोभ रूप कषाय को मन्द कर देता है। उसका चित्त शान्त रहता है एवं अपने को अशुभ प्रवृत्ति से रोक लेता है। योग एवं उपधान तप में लीन रहता है। वह मितभाषी सौम्य एवं जितेन्द्रिय बन जाता है। यही परिणाम पद्म लेश्या है। ६. शुक्ल लेश्या - शंख के समान श्वेत वर्ण के द्रव्य शुक्ल लेश्या के पुद्गलों का संयोग होने पर आत्मा में ऐसा परिणाम होता है कि वह आर्त ध्यान और रौद्र ध्यान का त्याग कर धर्म ध्यान एवं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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