________________
१३४
श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
छहों लेश्याओं में कृष्ण, नील और कापोत पाप का कारण होने से अधर्म लेश्या हैं। इनसे जीव दुर्गति में उत्पन्न होता है। अन्तिम तीन तेजो, पद्म और शुक्ल लेश्या धर्म लेश्या हैं। इन से जीव सुगति में उत्पन्न होता है।
जिस लेश्या को लिए हुए जीव चवता है उसी लेश्या को लेकर परभव में उत्पन होता है। लेश्या के प्रथम एवं चरम समय में जीव परभव में नहीं जाता किन्तु अन्तर्मुहूर्त बीतने पर और अन्तर्मुहूर्त शेष रहने पर ही परभव के लिये जाता है। मरते समय लेश्या का अन्तर्मुहूर्त बाकी रहता है। इसलिये परभव में भी जीव उसी लेश्या से युक्त होकर उत्पन्न होता है।
___ अवग्रह, इंहा, अवाय, धारणा मति ___ छव्विहा उग्गहमई पण्णत्ता तंजहा - खिप्पमोगिण्हइ, बहुमोगिण्हइ, बहुविहमोगिण्हइ, धुवमोगिण्हइ, अणिस्सियमोगिण्हइ, असंदिद्धमोगिण्हइ । छव्विहा ईहामई पण्णत्ता तंजहा - खिप्पमीहइ, बहुमीहइ, जाव असंदिद्धमीहइ । छविहा अवायमई पण्णत्ता तंजहा - खिप्पमवेइ जाव असंदिद्धमवेइ । छव्यिहा धारणा पण्णत्ता तंजहा - बहुं धारेइ, बहुविहं धारेइ, पोराणं धारेइ, दुद्धरं धारेइ, अणिस्सियं धारेइ, असंदिद्धंधारेइ॥५०॥ ___'कठिन शब्दार्थ - उग्गहमई - अवग्रह मति, खिप्पं - क्षिप्र-अर्थात् शीघ्र, बहुं- बहुत से, बहुविहंबहुत प्रकार के, असंदिद्ध - असंदिग्ध रूप से, पोराणं - पुराने समय की, अणिस्सियं - अनिश्रित।
भावार्थ - छह प्रकार की अवग्रह मति कही गई है यथा-- शीघ्रता से अर्थ को ग्रहण करे, बहुत से भिन्न भिन्न अर्थों को ग्रहण करे, बहुत प्रकार के अर्थों को ग्रहण करे, निश्चित रूप से सदा अर्थों को ग्रहण करे, चिह्न के अनुमान से अर्थ को ग्रहण करे। असंदिग्ध अर्थ को ग्रहण करे। ईहा मति यानी अवग्रह से जाने हुए पदार्थ को विशेष रूप से जानने वाली बुद्धि, छह प्रकार की कही गई है यथा - .. शीघ्रता से ईहा ज्ञान करे यावत् असंदिग्ध रूप से ईहा ज्ञान करे। अवाय मति यानी ईहा द्वारा जाने हुए पदार्थ का पूर्ण निर्णय करने वाली बुद्धि छह प्रकार की कही गई है यथा - शीघ्र निर्णय करे यावत् । असंदिग्ध रूप से निर्णय करे। धारणा यानी अवाय द्वारा निर्णय किये हुए पदार्थ की बहुत लम्बे समय तक स्मृति रखना धारणा कहलाती है। यह धारणा छह प्रकार की कही गई है यथा-बहुत धारण करे, बहुत प्रकार के पदार्थों को धारण करे, बहुत पुराने समय की बात को धारण करे, विचित्र प्रकार के एवं गहन अर्थों को धारण करे, अनिश्रित यानी बिना अनुमान आदि के धारण करे और असंदिग्ध रूप से धारण करे ।
विवेचन - मति - आभिनिबोधिक रूप चार प्रकार की है - १. अवग्रह २. ईहा ३. अपाय
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org