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स्थान ६
रूवप्पभा । जहा धरणस्सं तहा सव्वेसिं दाहिणिल्लाणं जाव घोसस्स । जहा भूयाणंदस्स तहा सव्वेसिं उत्तरिल्लाणं जाव महाघोसस्स । धरणस्स णं णागकुमारिंदस्स णागकुमाररण्णो छ सामाणियसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, एवं भूयाणंदस्स वि जाव महाघोसस्स ॥ ४९ ॥
आरभटा, सम्मद्दा
कठिन शब्दार्थ - पमाय पडिलेहणा - प्रमाद प्रतिलेखना, आरभडा सम्मर्दा, पप्फोडणा - प्रस्फोटना, विक्खित्ता विक्षिप्ता, वेइया वेदिका, वज्जेयव्वा - छोड़ देनी चाहिये, अणच्यावियं - अनर्तित, अवलियं अवलित, अणाणुबंधिं - अननुबन्धी, छप्पुरिमा - षट् पुरिम, णवखोडा - नवस्फोटका, पाणिपाण विसोहणी प्राणि प्राण विशोधनी ।
भावार्थ - छह प्रकार की प्रसाद प्रतिलेखना कही गई है यथा - १. आरभटा - विपरीत रीति से या उतावल के साथ प्रतिलेखना करना अथवा एक वस्त्र की प्रतिलेखना अधूरी छोड़ कर दूसरे वस्त्र की प्रतिलेखना करने लग जाना आरभटा प्रतिलेखना है । २. सम्मर्दा वस्त्र के कोने मुड़े हुए ही रहें या सल न निकाले जायं अथवा प्रतिलेखना के उपकरणों पर बैठ कर प्रतिलेखना करना सम्मर्दा प्रतिलेखना है । ३. मोसली - जैसे कूटते समय मूसल ऊपर नीचे और तिछे लगता है उसी प्रकार प्रतिलेखना समय वस्त्र को ऊपर, नीचे या तिछे लगाना मोसली प्रतिलेखना है । ४. प्रस्फोटना - जैसे धूल से भरा हुआ वस्त्र जोर से झड़काया जाता है उसी प्रकार प्रतिलेखना के वस्त्र को अच्छी तरह झड़काना प्रस्फोटना प्रतिलेखना है । ५. विक्षिप्ता प्रतिलेखना किये हुए वस्त्रों को बिना प्रतिलेखना किये हुए वस्त्रों में मिला देना अथवा प्रतिलेखना करते हुए वस्त्र के पल्ले आदि को ऊपर की ओर फेंकना विक्षिप्ता प्रतिलेखना है और ६. छठी वेदिका - प्रतिलेखना करते समय घुटनों के ऊपर, नीचे और पसवाड़े हाथ रखना. अथवा दोनों घुटनों या एक घुटने को भुजाओं के बीच रखना वेदिका प्रतिलेखना है। यह छह प्रमाद प्रतिलेखना साधु को छोड़ देनी चाहिए ।
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छह प्रकार की अप्रमाद प्रतिलेखना कही गई है यथा -
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१. अनर्तित - प्रतिलेखना करते समय शरीर और वस्त्रादि को न नचाना । २. अवलित प्रतिलेखना करते समय वस्त्र कहीं से भी मुडा न रह जाना चाहिए । प्रतिलेखना करने वाले को भी शरीर बिना मोड़े सीधे बैठना चाहिए अथवा प्रतिलेखना करते हुए वस्त्र और शरीर को चञ्चल न रखना चाहिए । ३. अननुबन्धी- वस्त्र को जोर से झड़काना न चाहिए । ४. अमोसली समय ऊपर, नीचे और तिरछे लगने वाले मूसल की तरह वस्त्र को ऊपर, नीचे या तिर्थे दीवाल आदि से न लगाना चाहिए । ५. षट्पुरिम - नवस्फोटका - प्रतिलेखना में छह पुरिम और नव खोड़ करने चाहिए । वस्त्र के दोनों हिस्सों को तीन तीन बार खंखेरना छह पुरिम है तथा वस्त्र को तीन तीन बार
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