SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३० . श्री स्थानांग सूत्र पूंज कर तीन बार शोधना नवखोड़ है । ६. प्राणिप्राण विशोधनी - वस्त्रादि पर चलता हुआ कोई जीव दिखाई दे तो उसको अपने हाथ पर उतार कर उसकी रक्षा करनी चाहिए ।।२॥ . ___छह लेश्याएं कही गई हैं यथा - कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या, तेजो लेश्या, पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या । तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रियों के छह लेश्याएं कही गई है यथा - कृष्ण लेश्या यावत् शुक्ल लेश्या। इसी तरह मनुष्य और देवों में भी छह छह लेश्याएं होती हैं । देवों के राजा शक्र देवेन्द्र के पूर्व दिशा के लोकपाल सोम नामक महाराजा के छह अग्रमहिषियों कही गई हैं। .. देवों के राजा शक्र देवेन्द्र के दक्षिण दिशा के लोकपाल यम महाराजा के छह अग्रमहिषियाँ कही गई हैं । देवों के राजा ईशान देवेन्द्र की मध्यम परिषद् के देवों की छह पल्योपम की स्थिति कही गई है। ___ छह दिशाकुमारियां कही गई हैं यथा- रूपा, रूपांशा, सुरूपा, रूपवती, रूपकांता, रूपप्रभा । छह विदयुतकुमारियां कही गई हैं यथा - आला, शक्रा, शतेरा, सौदामिनी, इन्द्रा, घनविदयुता । नागकुमारों के राजा नागकुमारों के इन्द्र धरणेन्द्र के छह अग्रमहिषियों कही गई हैं यथा - आला, शक्रा, शतेरा, सौदामिनी, इन्द्रा और घन विदयुता । नागकुमारों के राजा नागकुमारों के इन्द्र भूतानन्द के छह अग्रमहिषियों कही गई है यथा - रूपा, रूपांशा, सुरूपा, रूपवती, रूपकांता, और रूपप्रभा । जिस प्रकार धरणेन्द्र के छह अग्रमहिषियों कही गई हैं उसी प्रकार दक्षिण दिशा के घोष तक सब इन्द्रों के छह छह अग्रमहिषियों जान लेना चाहिए । जिस प्रकार भूतानन्द के छह अग्रमहिषियों कही गई हैं उसी प्रकार महाघोष तक सभी उत्तर दिशा के इन्द्रों के छह छह अग्रमहिषियों जान लेना चाहिए । नागकुमारों के राजा नागकुमारों के इन्द्र धरणेन्द्र के छह हजार सामानिक देव कहे गये हैं । इसी प्रकार भूतानन्द से लेकर महाघोष तक सभी इन्द्रों के छह छह हजार सामानिक देव होते हैं। विवेचन - शास्त्रोक्त विधि से वस्त्र पात्रादि उपकरणों को उपयोग पूर्वक देखना प्रतिलेखना या पडिलेहणा है। उत्तराध्ययन सूत्र अ० २६ गाथा २४ में भी इसके छह भेद बताये हैं। प्रमाद पूर्वक की जाने वाली प्रतिलेखना प्रमाद प्रतिलेखना है और प्रमाद का त्याग कर उपयोग पूर्वक विधि से प्रतिलेखना , करना अप्रमाद प्रतिलेखना है। प्रमाद प्रतिलेखना के छह भेदों एवं अप्रमाद प्रतिलेखना के छह भेदो का वर्णन भावार्थ में कर दिया गया है। लेश्या - जिससे कर्मों का आत्मा के साथ सम्बन्ध हो उसे लेश्या कहते हैं। द्रव्य और भाव के भेद से लेश्या दो प्रकार की है। द्रव्य लेश्या पुद्गल रूप है। इसके विषय में तीन मत हैं - - (क) कर्म वर्गणा निष्पन्न। (ख) कर्म निष्यन्द। (म) योग परिणाम। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy